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जैनसम्प्रदामशिक्षा ||
चिकित्सा -- १-सामान्यज्वर के लिये माय वही चिकित्सा हो सकती है जो कि भिन्न २ दोषवाले ज्यरों के लिये लिखी है ।
२ - इस के सिवाय इस ज्वर के किये सामान्यचिकित्सा तथा इस में रखने योग्य कुछ नियमों को खिलते हैं उन के अनुसार वर्षाव करना चाहिये ।
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३- जब तक ज्वर में किसी एक दोष का निश्चय न हो वहां तक विशेष चिकित नहीं करनी चाहिये, क्योंकि सामान्मज्वर में विशेष चिकित्सा की कोई आवश्यकता नहीं है, किन्तु एकाष टेक (स्त) लेमन करने से, भाराम लेने से इसकी खुराक के स्वाने से तथा यदि वस्त की कम्जी हो तो उस का निवारण करने से ही मह ज्वर उतर जाता है।
8 - इस ज्गर के प्रारम्भ में गर्म पानी में पैरों को जुबाना चाहिये, इस से पसीन्प्र आकर ज्वर उतर जाता है ।
५- इस पर मे ठेठा पानी नहीं पीना चाहिये किन्तु तीन उफान आने तक पानी को गर्म कर के फिर उस को ठंडा करके प्यास के खाने पर थोड़ा २ पीना चाहिये ।
६ - सोंठ, काली मिर्च और पीपल को मिस कर उस का भञ्जन अस्ति में करवाया पाहिये ।
७ बहुत खुली हवा में सभा खुसी हुई छत्र पर नहीं सोना चाहिये ।
८ - स्वयप्रदेश में (मारवाड़ आदि मान्स में ) मामरी का घडिमा, पूर्व देश में भाव की कांजी मा मोड, मध्य मारवाड़ में मूंग का ओसामण वा भात सभा दक्षिण में परहर (तूर ) फी पतली दाल का पानी भगवा उस में भाव मिला कर स्वाना चाहिये ।
९ - यह भी स्मरण रहे कि यह उमर जाने के बाद कभी २ फिर भी वापिस मा जाता है इस लिये इस के खाने के बाद भी परम रस्खमा चाहिये अर्थात् जब तक शरीर में पूरी ठाकत न भा जाने तन तक भारी भन्न नहीं खाना चाहिमे समा परिश्रम का काम भी नहीं करना चाहिये ।
१माम्बर में दोपनिष हुए बिना विशेष विकिरसा करने से कभी १ बडी भारी हानि भी भादोष अधिक प्रकुपित हो कर तथा प्ररूप धारण कर रोमी के प्राणघातक हो जाते है क्योंकि पीने के द्वारा अर की भीतरी वर्मा तथा उसमे बाहर न जाता है कारमविक्षेप के सिवाय भर में आप
दानप व
क्योंकि मान्य गम है प्र
( हानिकारक )
४-मर के जाने के बाद पूरी प्रति के आने तक भारी भ्रम का पाना तथा परिश्रम के कार्यक निषि दोनि के वायाम (रस्पर) मेथुन आम पर उपर वि मेवा करना विशेष हवा का पाना वा अधिक श्री जब का सेवन मे कार्य भी विपिन दे