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जैनसम्प्रदापशिक्षा || २-चिरायता, गिलोय, दास, ऑपग और कपूर, इन का काला कर के ठगा उसमें त्रिवर्षीय (सीन वप का पुराना ) गुरु ठाठ फर पीना चाहिये।
२-मवा-गिरोय, पिचपापहरा, मोबा, चिरापता भोर सोठ, इन का काम कर पीना चाहिये, यह पपमा काम वातपित्तज्वर में भतिलगभदायक (फायदेमन्द) माना गया है।
वातकफवर का वर्णन ॥ लक्षण-माई (उपासी) का भाना और भपि, ये दो सक्षम इस मर मुस्म, इनके सिवाय-सन्धियों में फटनी (पीग न होना), मखक का भारी होना, निद्रा, गीले कपड़े से वह को सकने के समान मासूम होना, हा भारीपन, सांसी, नाक से पानी का गिरना, पसीने का माना, शरीर में वाह का होना सभा बर का मम्मम मेगे, ये दूसरे मी पक्षण इस घर में होते हैं। चिकित्सा -१-दस वर में भी पूर्व मिसे अनुसार उपन का फरना पगा।
२-पसर फटागी, सोंठ, गिलोय भौर एरण की अर, इन का काला पीना चाहिक यह समानादि काम है।
२-फिरमाळे (अमस्तास) की गिरी, पीपासून, मोबा, फुटकी भोर मो इस (छोटी मर्यात् फासी रे), इन का फाा पीना पाहिये, या भारग्ननादिकावर -अथवाकेमर (भकेली) छोटी पीपस की उफानी पीनी पाहिये ।
पिचफफचर का वर्णन ॥ लक्षण नेत्रों में वाह भौर मरुपि, ये दो साण इस पर के मुस्म , न सिवाय तन्द्रा, मी, मुसका फफ से मिस होना (रिसा राना), पिसके मोर से मुस १-सोसार पुर गाव मिव गम्भा बषि से
ममम दियात स्प स पोमस सही ॥१॥ पीर प भायै श्रेय सन्धि पोर मया पो
वैप विषारै ओर ये मनावरे. २-या साम्रगतिवामनपर मम्बगविरामसरे मौके संयोग पावला मम्पमयमामाता॥
बाभारपवादिबाप-दीपन (ममि में प्रदीप्त परमेवान्म) पापन (रोगों से पम्नेगाम) या संपोषण (मय पार रो पत्रमपार निभानेवाम) भी है, इसमें गुमने पेही पलों का पाचन बार ऐर पर पेशीम मुखिहरमा)बाती ४-सोळा-मुख घना परत मार्ग परषि ॥
बार पार में सात पार पार में तप्त ॥ लिप्त बिरस मुरणाम पेत्र समन भरमस से। न्धन व मम पितकपरवरपरी ॥