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मसम्प्रदामशिक्षा ॥ इस के सिवाय यह भी देसा गया है कि रात दिन के सम्मासी अपठित (विना पो हुए) भी बहुत से बन मृत्यु के रिहों को प्राय अनेक समयों में मतला ठे, सासर्व सिर्फ यही है कि-"जो जामें निशदिन रहत, सो तामें परवीन" भात् विस कर बिस मिपय में रात दिन का भम्पास होता है वह उस विषय में प्राय प्रवीण हो खाता है, परन्तु यह पात सो भनुमय से सिद्ध हो चुकी है कि-सनिपात स्वर के यो १५ भेद कहे गये हैं उन के पतलाने में तो अच्छे २ चतुर वैषों को भी पूरा २ विचार करना पाता अर्थात् यह भमुक प्रकार का सनिपात है इस पाठ का पसताना उनकी मी महा कठिन पर माता है।
इन सब बातों न विचार कर यही का वा सकता है कि-बो देय समिपात की योम्प पिकिस्सा कर मनुष्य को बचाता है उस पुण्यवान् वैष की प्रचसा के मिलने में खेसनी सर्वमा भसमर्म रे, यदि रोगी उस वेप को अपना सन मन भौर पन बात सर्वस भी ये देने सो भी वह उस मैप का यमोचित प्रस्तुपकार नहीं कर सकता है मोद बदला नहीं उतार सकता है किन्तु वह (रोगी) उस वेप का सर्वदा प्राणी ही रहता।
यहाँ हम सहिपाववर के ममम सामान्य सक्षम और उसके बाद उसके विषय में मावश्यक सूपना कोही सिलेंगे फिन्तु सतिपात के १३ मेदों को नहीं मिलेंगे, इस का परम केवल यही है कि सामान्य बुदिमा बन उस विषय को नहीं समझ सकते हैं मोर हमारा परिभम केवल गास्म छोगों ने इस विषय का ज्ञान कराने मात्र के मियेन्न्तुि उनमें - वैप बनाने के लिये नहीं है, क्योंकि गृहस्मयन तो यदि इस के विषय में इतना मी मान मेंगे तो मी उमके सि इतना ही पान (मिसना हम सिते) मत्पन्त हिटलरी होगा।
लक्षण-जिस घर में पात, पित मौर कफ, ये तीनों दोष कोप को प्राप्त हुए रोठे -चौपाई-पपन पाचीव पुनि । प्रग सम्बि सिर सोहे
परते बर बीर ने मारपरिकमेपन में मार्ष में एक भरपये में रोष पुनि मै वाम ॥३॥ तमा मरमा भ्रम परमपा भाषि मास पुनि पस संतापा। मिमा स्पाम सर सी दोसैम पर्स पुनि विपास ॥५॥ भव पिपिस भाव में पासू। अस्य पिर बरे हो पम् ॥ ६॥ कप पित मत्सो सपिर मुखमा रस पठमो पर दिया . हप्मा पाष पास ग्रे पाणीप भारे प्रकरण मग मरि प्रा परमस स्लेर पनि भंग में पर प्पल कप भटि पाषा विभागामहिमा. सम्म र ममा पेण । मेमा पारा -10 भारी पर मुने महिमपभोत्रपाकमाएबाप पात प्रम में रोप पाप । समिपमान सा समिरावग्वा धन सम् । प्रम्पास्टर में पापमपा.१४