________________
चतुर्थ अध्याय ॥
४४५
चाहिये, पीछे उस जल को फिर जलाना चाहिये, इस प्रकार जलानेपर आखिरकार क्षार पैंदी में सूख कर जम जायगा ।
सत - गिलोय तथा मुलेठी आदि पदार्थों का सत बनाया जाता है, इस की रीति यह है कि - गीली औषध को कूट जल में मथकर एक पात्र में जमने देना चाहिये, पीछे ऊपर का जल धीरे से निकाल डालना चाहिये, इस के पीछे पेंदी पर सफेदसा पदार्थ रह जाता है वही सूखने के बाद सेत जमता है ।
सिरका - अंगूर जामुन तथा साठे ( गन्ना वा ईख ) का सिरका बनाया जाता है, इसकी रीति यह है कि - जिस पदार्थ का सिरका बनाना हो उस का रस निकाल कर तथा थोड़ासा नौसादर डाल कर धूप में रख देना चाहिये, सड़ उठनेपर तीन वा सात दिन में बोतलों को भर कर रख छोड़ना चाहिये, इस की मात्रा आघे तोले से एक तोलेतक की है, दाल तथा शाक में इस की खटाई देने से बहुत हाजमा होता है, भोजन के पीछे एक घण्टे के बाद इसे पानी में मिलाकर पीने से पाचनशक्ति दुरुस्त होती है ।
गुलकन्द --- गुलाब या सेवती के फूलों की पॅखड़ियों की मिश्री बुरका कर तह पर तह देते जाना चाहिये तथा उसे ढँक कर रख देना चाहिये, जब फूल गल कर एक रस हो जावे तब कुछ दिनों के बाद वह गुलकन्द तैयार हो जाता है, यह बड़ी तरावट रखता है, उष्णकाल में प्रातःकाल इसे घोट कर पीने से अत्यन्त तरावट रहती है तथा अधिक प्यास नही लगती है ।
कुछ औषधों के अंग्रेज़ी तथा हिन्दी नाम
॥
हिन्दी नाम ॥
संख्या ।
अग्रेजी नाम ||
संख्या । अग्रेजी नाम ॥
१ इनफ्यूजन ||
२
एकवा ॥
एक्स्ट्राक्ट ॥
चाय ॥
पानी ॥
सत्व, घन ॥
११
१२
१३
पलास्टर ||
पोल्टिस ||
फोमेनटेशन ॥
हिन्दी नाम ॥
लेप ॥
लूपड़ी ॥
सेंक ॥
१ - इस को सस्कृत में सत्व कहते हैं ॥
२ - इसे पूर्वीय देशों में छिरका भी कहते हैं, वहा सिरके में आम करोंदे बेर और खीरा आदि फलों को भी डालते हैं जो कि कुछ दिनतक उस में पड़े रह कर अत्यन्त सुस्वादु हो जाते 11
३-अगूर का सिरका बहुत तीक्ष्ण ( तेज ) होता है ॥
४-जामुन का सिरका पेट के लिये बहुत ही फायदेमन्द होता है, इस में थोडा सा काला नमक मिला कर पीने से पेट का दर्द शान्त हो जाता है ॥
५- गुलकन्द मे प्राय वे ही गुण समझने चाहिये जो कि गुलाब वा सेवती के फूलो मे तथा मिश्री में है ॥
___६ - यह शीतल, हृदय को हितकारी, ग्राही, शुक्रजनक ( वीर्य को उत्पन्न करनेवाला), हलका, त्रिदोषनाशक, रुधिरविकार को दूर करनेवाला, रंग को उज्वल करनेवाला तथा पाचन है ॥