________________
चतुर्थ अध्याय ॥
४४३ भावना-दवा के चूर्ण को दूसरे रस के पिलाने को ( दूसरे रस में भिगाकर शुष्क करने को ) भावना कहते है, एकवार रस में घोट कर या भिगा कर सुखाले, इस को एक भावना कहते है, इसी प्रकार जितनी भावनायें देनी हो उतनी देते चले जावें । ___ बाफ-बाफ कई प्रकारसे ली जाती है, बहुत सी सेंक और बांधने की दवायें भी बफारे का काम देती हैं, केवल गर्म पानी की अथवा किसी चीज को डाल कर उकाले हुए पानी की बाफ सॅकड़े मुखवाले वर्तन से लेनी चाहिये, इस की विधि पहिले
के है।
खवाले वर्तन से लेनी चाहिये, इसान को डाल कर
__ बन्धेरण-किसी वनस्पति के पत्ते आदि को गर्म कर गरीर के दुखते हुए स्थान पर बॉघने को बन्धेरण कहते है।
मुरव्वा-हरड़ आँवला तथा सेव आदि जिस चीज़ का मुरव्या बनाना हो उस को उबाल कर तथा धो कर दुगुनी या तिगुनी खाड या मिश्री की चासनी में डुबा कर रख छोड़ना चाहिये, इसे मुरब्बा कहते हैं।।
मोदक-बड़ी गोली को मोदक कहते है, मेथीपाक तथा सोंठपाक आदि के मोदक गुड़ खाड़ तथा मिश्री आदि की चासनी में बाँधे जाते हैं ।
मन्थ-दवा के चूर्ण को दवा से चौगुने पानी मे डाल कर तथा हिला कर या मथकर छान कर पीना चाहिये, इसे मन्य कहते है ।
यवागू-कांजी-अनाज के आटे को छ'गुने पानी में उकाल कर गाढ़ा कर के उतार लेना चाहिये।
लेप-सूखी हुई दवा के चूर्ण को अथवा गीली वनस्पति को पानी में पीस कर लेप किया जाता है, लेप दोपहर के समयमें करना चाहिये ठढी वख्त नहीं करना चाहिये, परन्तु रक्त पित्त, सूजन, दाह और रक्तविकार में समय का नियम नहीं है ।
१-जितने रस मे सव चूर्ण इव जावे उतना ही रस भावना के लिये लेना चाहिये, क्योंकि यही भावना का परिमाण वैद्यों ने कहा है ॥
२-इस का मुख्य प्रयोजन पसीना लाने से है कि पसीने के द्वारा दोष शरीर में से निकले ॥ ३-यदि कोई कडी वस्तु हो तो फिटकडी आदि के तेजाब से उसे नरम कर लेना चाहिये ॥ ४-मधुपक्क हरड आदि को भी मुरव्या ही कहते हैं। ५-अभयादि मोदक आदि मोदक कई प्रकार के होते हैं ।
६-लेप के दो भेद हैं-प्रलेप और प्रदेह, पित्तसम्बधी शोथ मे प्रलेप तथा कफसम्बधी शोथ मे प्रदेह किया जाता है, (विधान वैयक ग्रन्थों में देखो)॥
७-रात्रि में लेप नहीं करना चाहिये परन्तु दुष्ट व्रणपर रात्रि मे भी लेप करने में कोई हानि नहीं है, यह भी स्मरण रखना चाहिये कि प्राय लेपपर लेप नहीं किया जाता है।