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मेनसम्प्रदानशिक्षा ||
में भरकर फिरग तथा गठिया आदि रोगों में मुँह से वा नाक से पीछे हैं, इसे भूम्रपान कहते हैं ।
नस्य --- नाक में भी तब तथा चूर्णकी सूँघनी की जाती है उस को नेम करते हैं। पान - किसी दगा को ३२ गुने अथवा उस से भी अधिक पानी में उकाळ कर आभा पानी बाकी रक्खा खाने तथा उसे पिमा जाने इसे पान कहते हैं ।
पुटपाक - किसी हरी वनस्पति को पीस कर गोळा बना कर उस को बड़ (बरगद) बा एरण्ड अथवा जामुन के पत्ते में छपेट कर ऊपर कपड़मिट्टी का भर दे कर मन फों को सुलगा कर निर्धूम होनेपर उस में रख देना चाहिये, नब गोसे की मिट्टी हो जाये तब उसे निकाल कर तथा मिट्टी को दूर कर रस निचोड़ लेना चाहिये, परन्तु यदि वनस्पति सूखी हो तो बल में पीस कर गोला कर मेना चाहिये, इस रस को पुटपाक कहते हैं, इसके पीने की मात्रा दो से चार वोले तक की है।
पश्चाङ्ग – मूल (जड़), पते, फल, फूल तथा छाम, इस को पचास कहते हैं।
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फलवर्ती - योनि भषना गुदा के अन्दर दना की मोटी बच्ची दी जाती है तथा इस में भी या दनाका सेल अथवा साबुन व्यादि भी उगाया जाता 1
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फांट - एक भाग दगा के चूर्ण को माठ माग गर्म पानी में कुछ घंटोंतक मिगा कर उस पानी को दबा के समान पीना चाहिये, ठेके पानी में १२ घण्टेवक भीगने से भी फॉट तैयार होता है, इस की मात्रा ५ तोके से १० तोले तक है।
वस्ति - पिचकारी में कोई मनाही दबा भर कर मल वा मूत्र के स्थान में दबा पढ़ाई बाती है, इसका नाम वर्खि है, वह खाने की दवा के समान फायदा करती है।
1- धूम्रपानः प्रकार का है-समय न रेवन अस ममय भीर प्रभूपन का विधान भीर उपयोग भूप रे वेषक मम्बा में देख लेना चाहिये-ब हुआ जरपोक बुखिया जिस से व तिनिधि राम हो रेचन किया हुआ रात्रि में जाया हुआ प्यासा सूम रहा थे उदररोगी जिसका मत हो तिमिररोगी छावाला अफरे से पीडित वाम्म प्रमेह से पीडित मान्नु रोपी मर्भवती श्री स्व और श्रीम जिस मे बूम महरत और का उपयोग किया से जिम मे अम नही भारि का उपयोग किया हो
से पीड़ित
का ताल उरभाव
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प्राणियों को धूम्रपान नहीं करना चाहिये।
१- के सब मेद और उनका विधान कापि दूसरे बैंकों में देखना क्योंकि का विमान बहुत विस्तृत ६०
३ की मोाई गुप्त के समान हामी पाहिने
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भाषा भानु म में भिमाने को
है ॥
नमक कोई भाषा दिन कहते है तथा इसी जो रई से मन से मन् पति के सब भेद तथा उनका विद्याय आदि इस वैचक प्रथों में देखना चाहिये बहुत विचार दे
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