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जैनसम्पदामशिक्षा ||
ठोते है, यदि फाम को भोड़ा सा नरम करना हो तो भोभा हिस्सा पानी रखना चाहिने, एक बार उकाल कर छानने के पीछे जो कूचा रद्द प्यावे उस को दूसरी बार (फिर भी छाम फो) उकाला जावे समा छान पर उपयोग में लाया जाये उसे परकाम ( दूसरी उफाळी ) कहते हैं, परन्तु धाम को उकासे हुए फाभ का मासा कूचा दूसरे दिन उपयोग में नहीं लाना चाहिये, हो मात काम का कुचा उसी दिन शाम को उपयोग में मने में कोई हर्ज नहीं है ।
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निर्बक रोगी को फाम का अधिक पानी नहीं देना चाहिये ।
नवीन प्रवर में पाचन फाभ ( दोपों को पकानेवाला काय ) देना हो तो अवशेष ( आभा पाकी) रख कर देना चाहिये ।
फुटकी आदि फटु पदार्थों का काम ज्वर में देना हो तो ऊपर के पकने के माव देना महिये ।
स्मरण रहे कि -फाय फरने के समय वर्तन पर ढकन देना (ढोकना) नहीं चाहिये, मर्मोफि ढकन वेकर ( ढांक कर ) बनाया हुआ फाम फायदे के बदले मड़ा भारी नुकसान करता है ।
कुरला -- दवा को उकाल कर उस पानी के अभना रात को भिगोये हुए ठंडे हिम के अमना फिटकड़ी और नीलामोभा आदि को पानी में डाल कर उस पानी के सुखपाक आदि (मुँह का पफ जाना भगवा मसूड़ों का फूलना भादि) रोगों में फेरले किये जाते हैं।
ऊपर कहे हुए रोगों में त्रिफला, रोग, तिलकँटा, चमेली के पधे, तूप, पी और शहद, में से किसी एक वस्तु से फुरसे करने से भी फायदा होता है ।
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गोली -- किसी दवा को अथमा सस्व को शहद, नींबू का रस, भवरम का रस, पान का रस, गुड़, भगवा गुगुल की भारानी में डाल कर छोटी २ गोलियां है, पीछे इन का यथावश्मफ उपयोग होता है।
बनाई जाती
रात दिन में देसिक कार र दिन में त
१-आर के पकने का समय
नमक पर बारह दिन में पड़ता है ।
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-भर-भ (रिकनेवाला) समन (धान्तिकरनेवाला) घोषन ( करने और पापा को पूरा करनेवाला) बावीस मे सिपी में समीप मेोपनता पार भारि में रोपण करके किये है, (इनका विधान में दे
४दन
में मोह है ५न्नुम को बरि घोषना हो या केप में भी इसमें होल है