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शेर भी मैंने बहुत चिरकाल पर्यन्त आपके घर में निवास किया किन्तु भव में भावी हूं, परन्तु आप एक सुभाग्य पुरुष है मेरे से कोई वर मांग को समय मांगना क्योंकि मैं भव रहना नहीं चाहती, तब शेठ की मे मी दषी से विमय पूर्वक हाथ मोड़ कर निषेव म किया कि हे मातः ! मैं का अपने परिवार की सम्पति के अनुसर आप स पर विषय याचना करूंगा, मातः काल हवे ही शेड मो न अपने परिवार से सम्पति श्री, किन्तु उनकी सम्मधियों से शेठ भी की सही नहीं हुई तब शेठ भी की बाटा कम्पा जो पाठशाला में पड़ती भी जब बस से पूछा तब उसने बिनय पूर्वक शेठ भी के चरणों में निषेदन किया कि पिता भी आप चमी 1 माता में सम्य (प्रेम) का वर मांगो जिस से उसके बान के पात्र फूट और कम हो जायेगा, वह न हो शेठ भी न इस बात को स्वीकार कर लिया, फिर रात्री के समय देवी ने दर्शन दिये या फिर शेठ भी मे नही प्रेम कर पर मांगा तब देवी मे चर में कहा कि हे शेठ भी जब तुम परस्पर प्रेम रखने की याचना करते हो तो फिर मैंने कह जाना है क्योंकि यहां 'प्रेम'