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बैनसम्प्रदायरिया ॥ सम ही को होगा, समासू के कवरदान (कवर करनेवाले) बड़े भावमी समाखू घ रस थूकने के लिये पीक धान रखते हैं परन्तु हम को बड़ा माचर्य होता है कि मिस तमाखू केयूक को मे बठरामि का उपयोगी समझते हैं उस को निरर्थक क्यों जाने देते हैं। ___ अब जो गेग मुसपास के लिये प्राय सुपारी का सेवन करते हैं उस के विषय में मी संक्षेप से मिलकर पाठकगण को उसके हानि नाम विस्तकाते हैं___ सुपारी मुसमास के लिये एक भच्छी चीम है परन्तु इसे बहुत ही बोरा साना माहिये, क्योंकि इस का भधिक साना हानि करता है, पूर्व सपा दक्षिण में भी पुरुष छातियों को तमा बीकानेर मादि मारवाद देठस नगरों में करवे में उबारी हुई पिकनी सुपारियों को सेरों सा पाते हैं, इस से परिणाम में हानि होती है, यपपि इस का सेवन लिमों के लिये तो फिर मी कुछ भच्छा है परन्तु पुरुषों को सो नुक्सान ही करता है, सुपारी में घरीर के सांपों को प्रभा पात को रीग करने का समाव है, इस लिये सास कर पुरुषों को इस प्र भपिक खाना कमी भी उचित नहीं है, इस सिमे भावश्यकता के समय भोजन करने के बाद इस का जरा सा टुकड़ा मुस में गलकर भागना चाहिये तमा उस न थूक निगम बाना चाहिये परन्तु मुख में माहुमा उस का फूचट (गुश) यूक देना पाहिये, सुपारी मनावा टुकड़ा कंठ को मिगारताहै। ___ पाने का सेवन यदि किया जाये तो पर वामा और मुँह में गर्मी न करे ऐसा होना पोहिये, किन्तु व्यसनी बन कर मैसा मिरे वैसा ही पान लेने से उष्टी हानि होती है तथा सब दिन पानों को पावते रहना मगरीपन भी समझा जाता है, पहुत पान साने से पा आँस भौर शरीर का तेज, बाल, बात, मठरामि, कान, रूप मौर ताम्त को नुकसान पपासा रे, इसलिये बोड़ा साना ठीक है। __ पानों के साम में वो कर बौर पूने का उपयोग किया जाता है उस में भी किसी तरह की दूसरी पीमकी मिठापट नहीं होनी चाहिये सबा इन दोनों को पानों में ठीक २ (न्यूनापिक नहीं) मगाना चाहिये।
पान भौर सुपारी के सिवाय-यपी, मैंग भोर सज भी मुस मुगन्भि की चीजें हैइन में से इसायपी तर गर्म है और फायदेमन्द होती है परन्तु इसे भी मषित मही साना पाहिये सन और सौंग बापु भौर कफ की मविवार को मोड़ी २ सानी पाहिये।
-पास भीर पन्वरे अमपुर के गम होते. २-पावनड में ममा पान पसारवाई।
1-पान बनेपामा परि इम सप पाये प्रभी मनसे वो उनो पार पाने प्रयास रना ॥
-माने में ये (सफेर) इयची परपसोय करना चाहिये।