________________
२६०
जेनसम्प्रदामशिक्षा ||
५- अवस्था - शरीर को रोग के योग्य मनानेवाले कारणों में से एक कारण - पस्था भी है, दो ! बचपन में शरीर की गर्मी के कम होने से ठपती असर कर जाती है, उस की मोम्म सम्भाल न रखने से मोड़ीसी ही देर में क्षफनी, दम, खांसी भोर फफ आदि के अनेक रोग हो जाते हैं ।
जबानी (युवावस्था) में रोगों को रोफनेपाली चावायवनी शक्ति की मता के होने से शरीर को रोग के योग्य बनानेवाले फारणों का जार भोड़ा दी रहता है।
धीरी वृद्धावस्था में शरीर फिर निर्मल पड़ जाता है और यह निता युद्ध मनुष्य के शरीर को पार २ रोग के योग्म मनाती है ||
६ - जाति -- विचार फर देखा जाय तो पुरुषजाति की अपेक्षा स्त्रीजाति का शरीर रोग के असर के योग्य अधिक होता है, क्योंकि श्रीमाति में कुछ न कुछ अज्ञान, विचार से दीनता और हठ अवश्य होता है, इस लिये पह आहार विहार में हानि लाभ का कुछ भी विचार नहीं रखती है, घूसरे उस के शरीर के मन्भेज नाजुक होने से गर्भ
प्यारे जमविवाह के विषय में भानुसार इन बातों का विचार अवश्यमेव करना पाहिये क्योंकि इन वा का विचार करने ४ जम्मभरतक सुःख भोगना पडता है तथा स्वाभम कुपों की पान हो जाता है, देखो। उत्तम के तुम उस से सम्पत्ति साधाओं के परत है यथा पुत्र मूल
मूमन होने से नहाने
कभी काम नहीं रह सकता है बीमार भयो विवाह के द्वारा पुत्रक का नाम हो जाता है जो पुरुष अपने पुत्र और पुत्रियों को मु रमाबाई में रूपी तप का विचार कर शाखानुसार पनि विभि विवाह करें क्योंकि को एवा फरेंगे ही किराला भे को पन्तान सिजनको की रक्षा के लिये समय विवाह सेमा तो वह पडे १ मा क
की
और पते को देख एक वृक्ष का मूल है
नहीं कि उसका योग्य विवाह ही
रक्षा
भूमी रक्षा करनी पड़ती है उसी प्रकार की सभा भार रा करनी चाहिये जैसे जिस रथ का मूल पध से भी कभी मर्दी सिर पर भी मूम ही विषम हुआ तो सबसे प पर मिरगा दी कार जो पुत्र रातमा गुम होमा तथा उका विवाद दाया तो धन तथा
की प्रतिदिन उमति होगी पर्ने प्रकार बाप बाद का माम तथा पत्रा भार माता भांति से गुप वा भाग्य की वृद्धि होगी क्योंकि पुलवाम और उत्तम आपले एक दीसम्पूर्ण इस प्रकार शोभित भर से आता है असेच एक माम नम सुगन्धित रहता है परन्तु यदि पुत्र तवा कुदान हुआ तो यह अपने तब मम पवमान भरत आदि को धूल में मिला देगा इए कि विवाह में धन आदि की अपेक्षा के कर्म भीरा आदि का मिम्भव उचित यस संसार में बाइक की उपमा के समान है प्रा कमल नाम है, इ० कारण मूलपर या ध्यान करने से परम गुरा मि है अन्यथा कयापि नहीं ! किसी में है कि एक दिन भवा एसी मूल धाय ७१ अ वर और कन्या के ऊपर कि हुए पु कोषा करवाह से उन दोनों की प्रकृति पाएको र
मूमन
क्याकि नदी सिम्य
भग बिल