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बैनसम्प्रदायशिक्षा स्टेयोस्कोप–स या से फेफसा, श्वास की नली, एदय तमा पसम्मिों में होती हुई क्रिया न पोप होता है, यपि इसके द्वारा किस प्रकार उफ विषय का दोष होता है उस का वर्णन करना कुछ भावश्यक है परन्तु इस के द्वारा जांचने की फिमा का पान ठीक रीवि से मनुमनी रास्टरों के पास रह कर सीखने से समा भपनी बुद्धि के द्वारा उसका सब पनि सने हरी से हो सकता है, इस लिये यहाँ उस के अधिक वर्णन परने की मावश्यकता नहीं समझी गई ॥
दर्शनपरीक्षा ॥ मांस से देख कर यो रोगी की परीक्षा की बाती है उसे यहाँ दर्शनपरीक्षा के नाम से किसी है, इस परीक्षा में बिहा, नेत्र, माइति (पारा), स्वचा, मूत्र और मन की परीक्षा का समावेश समझना चाहिये, इन का सक्षेपतमा कम से वर्णन किया जाता है -
जिहापरीक्षा-विहा की वशा से गळे होबरी और बातों की दशा का शन होता है, क्योंकि निहा के ऊपर कर बारीक परत गरे होमरी और मौतों के मीनरी बारीक पाव के साथ जुड़ा हुमा और एक सरच (एकरस मात् अस्पन्त) मिम हुआ है, इस के सिपाप निहापरीक्षा के द्वारा दूसरे भी कई एक रोग बाने मा सन्ने , स्पोंकि बीम के गीपन रंग और ऊपरी मैन से रोगों की परीक्षा दो सची है, भारोम्पदशा में चीम भीगी और मच्छी होती है तथा उस की अनी उपर से कुछ गड होती है, अब इस की परीक्षा के नियमों का कुछ वर्णन करते हैंभीगी जीम-मच्छी हाम्व में बीम थूक से भीगी रहती है परन्तु नुसार में
चीम सूमने माती है, इस लिये जग बीम भीगी हुई हो तो समझ सेना पाहिले कि नुसार नहीं है, इसी प्रकार हर एक रोग में बीम सूस कर अप फिर भीगनी शुभ हो जाये तो समझ ना पाहिये कि रोग भच्छा होनेवाग है, मपपि रोग वशा में जम के पीने से एक बार वो नीम गीली हो जाती है परन्तु जो नुसार
होता है तो तुरत ही फिर भी सूम जाती है । सम्मी जीम-बहुत से रोगों में आवश्यकता के अनुसार शरीर में रस उत्सल
नहीं होता है और रस की कमी से उसी दर यूक मी भोड़ा पैदा होता है इस से जीम सूस जाती है और रोगी को भी जीम सूमी हुई मालूम देती है, उस समय रोगी कहता है कि मेरा सब मुर सूस गया, इस प्रकार की बीम पर भगुनि लगाने से भी वह एमी भौर करसी माउस पासी, नुसार, पीताम, भोरी सभा मरे भी समाम पेपी मुसारों में, होजरी सभा माता के रोगों में भार बहुत जोर सुमार में बीम स जाती है अर्थात् यो २ स्पर भषिक होता रस्य २ जीम भपिक सूमती है, जीभ भ परहा होना मौत की निशानी है ॥