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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
पर गुलाबी रंग माकम होता है तथा गारु उपसे हुए माम होते हैं, जब भाकृति म हो उस समय यह समझना चाहिये कि खून का सिर की तरफ सभा ममन में अधिक जोश चढ़ा है ।
8- फली हुई आकृति - मुठ निवळसा जीर्णम्पर और जलोदर आदि रोगों में आकृति फूली हुई अभाव भोभरमाली होती है, भांग की ऊपर की घड़ी घड़ जाती है, गाल में अंगुलि के दाने से गा पड़ जाता है तथा आकृति बीसठी है।
सूजी हुई
इसी
५- अन्दर खुड़ी बैठी हुई आकृति — जैसे बुध की शाखा के पते सभा छिलकों के छीलने के बाद झासा सूडी हुछ माछम होती है इसी मफार कर एक भयंकर रोगों की अन्तिम भवस्था में रोगी की आकृति वैसी ही हो जाती ६, देखो ! देने में मरने के समय जो भाकृति बनती है वह माम होती है, इस दक्षा में स्वाट में सस, भांत के डोके अन्दर घुसे हुए, गड़े पड़े हुए, नाफ भनीदार, कनपटी के आगे गट्टे पड़े हुए, गा हाड़ों पर पड़े हुए तथा आति का रंग आसमानी होता है, ऐसे लक्षण जन दिई देने में तो समझ लेना चाहिये कि रोगी का जीना फटिन है | स्वपापरीक्षा - जैसे त्वचा के स्पर्धसे गर्मी और ठंड की परीक्षा होती है उसी प्रकार स्वचा के रंग से सभा उम्र में निकली हुई कुछ घटों और गांठों भावि से शरीर फे दोपों का कुछ अनुमान हो सकता दे, श्रीसला मोरी और भभपड़ा ( आकड़ा फाफड़ा) आदि रोगों में पहिले मुखार आता है उम्र बुस्तार को लोग नेसमझी से पहिले सादा बुखार समक्ष देते हैं परन्तु फिर त्वचा का रंग का हो जाता है तथा उस पर महीन २ दाने निकल आते है वे ही उक रोगों की पहिचान फरा सकते है इसलिये उन्हें अच्छी तरह से देखना चाहिये, यदि घरीर पर कोई स्थान का हो भभवा फ पर सूजन हो तो उसे खून के जोर से भगवा पिरा के विकार से समझना चाहिये, जिस की त्वचा का रंग काळा पड़ता जाये उस के शरीर में बायु का दोष समझना चाहिये, बिस्र के शरीर का रंग पीछा पड़ता जावे उस के शरीर में पिछ का दोष समझना चाहिये, जिस के शरीर का रंग गोरा और सफेद पढ़ता जावे उम्र के शरीर में फफ का दोष समझना चाहिये तथा जिस के शरीर की त्वचा का रंग पिकुछ रूखा होकर अम्बर धीरा २ या दिखाई देवे सो समझ लेना चाहिये कि खून बिगड़ गया है भगवा छप गया है, लोग इसे गर्मी पदते हैं, जब स्वभा तक खून नहीं पहुँचता है धन ला गर्म और रूसी पड़ जाती है, यदि स्वचा का रंग सोने के रंग के समान (वामड़ा ) हो तो समझ लेना चाहिये कि रकपित तथा मातरक का रोग है, यदि त्वचा पर काले
प्रकार की
अलि में बैठे हुए,