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चतुर्थ अध्याय ॥
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डाक्टरी मत से मूत्रपरीक्षा - रसायनशास्त्र की रीति से मूत्रपरीक्षा की डाक्टरोने अच्छी छानवीन (खोज) की है इस लिये वह प्रमाण करने ( मानने ) योग्य है, उनके मतानुसार मूत्र में मुख्यतया दो चीजे है - युरिआ और एसिड, इनके सिवाय उस में नमक, गन्धक का तेजाब, चूना, फासफरिक ( फासफर्स) एसिड, मेगनेशिया, पोटास और सोडा, इन सब वस्तुओं का भी थोडा २ तत्त्व और बहुत सा भाग पानी का होता है, मूत्र में जो २ पदार्थ है सो नीचे लिखे कोष्ठ से विदित हो सकते है:मूत्र में स्थित पदार्थ ॥
मूत्र के १००० भागो में ||
पानी ॥
शरीर के घसारे से पैदा होनेवाली चीजें ॥
खार ॥
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युरिया ॥ यूरिक एसिड ॥ चरवी, चिकनाई, आदि ||
नमक ॥
फासफरिक एसिड | गन्धक का तेजाब ॥
चूना ॥
मेगनेशिया ॥
पोटास ॥
सोडा ॥
९५६॥
१४ ॥
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० ॥
०
भाग ॥
भाग ॥
21
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भाग ॥
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०
०
१ ॥ ॥
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बहुत थोडा ||
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मूत्र में यद्यपि ऊपर लिखे पदार्थ है परन्तु आरोग्यदशा में मूत्र में ऊपर लिखी हुई चीजें सदा एक वजन में नहीं होती है, क्यो कि खुराक और कसरत आदि पर उनका होना निर्भर है, मूत्र मे स्थित पदार्थों को पक्के रसायनशास्त्री ( रसायनशास्त्र के जाननेवाले) के सिवाय दूसरा नही पहिचान सकता है और जब ऐसी ( पक्की ) परीक्षा होती है तभी मूत्र के द्वारा रोगों की भी पक्की परीक्षा हो सकती है। हमारे देशी पूर्वाचार्य इस रसायन विद्यामें बड़े ही प्रवीण थे तभी तो उन्होंने बीस जाति के प्रमेदो में शर्करा - प्रमेह और क्षीरप्रमेह आदि की पहिचान की है, वे इस विषय में पूर्णतया तत्त्ववेत्ता ये यह बात उनकी की हुई परीक्षा से ही सिद्ध होती है ।
बहुत से लोग डाक्टरों की इस वर्तमान परीक्षा को नई निकाली हुई समझकर आश्चर्य
में रह जाते हैं, परन्तु यह उनकी परीक्षा नई नहीं है किन्तु हमारे पूर्वाचार्यों के ही गूढ़ रहस्य से खोज करने पर इन्होंने प्राप्त की है, इस लिये इस परीक्षा के विषय में उनकी कोई तारीफ नहीं है, हा अलवतह उनकी बुद्धि और उद्यम की तारीफ करना हरएक गुणग्राही मनुष्य का काम है, यद्यपि मूत्र को केवल आखो से देखने से
उस में स्थित
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