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नसम्प्रवामशिक्षा ॥ अनेक चीमों की न्यूनाभिकता ठीक रीति से माहम नहीं होती है वमापि मूत्र के जये से तमा मूत्र के पतलेपन या मोटेपन से एक रोगों की परीक्षा अच्छी तरह से पाँच करने से हो सकती है।
नीरोग भादमी को सप दिन में (२१ भण्टे में) सामान्यतमा २॥ रसस मूत्र होता हे तमा नर कभी पतछा पदार्भ फमती मा बासी लानेमें भा जाता है तष मूत्र में भी पट मढ़ होती है, ऋतके अनुसार भी मूष के होने में फरू पाता है, जैसे देलो। श्रीत काठ की अपेक्षा उप्पाठ में मघ पोरा होता है।
मामय का एक रोग होता है जिस को मूत्राशय का अन्दर कोते हैं, यह रोग मूत्राशय में विकार होने से आरव्युमेन नामक एक मावश्यक तत्त के मूत्रमार्गवारा खून में से निकल जाने से होता है, मूत्र में भारयुमेन है या नहीं इस बात की बोध करने से इस रोग की परीक्षा हो सकती है, इसी वर मूत्र सम्बन्धी एक दूसरा रोग मधुममेह (मीठा मूत्र ) नामक है, इस रोगमें मूत्रमार्ग से मीठे म भपिक भाग मूत्रमें माता मौर यह मीठे का भाग मत्र को साधारणतया मांस से देसने से यमपि नहीं मालम होता (कि इसमें मीय है वा नहीं) पापि अच्छी तरह परीक्षा करने से तो वह मीठा भाम जान ही मिया माता, इसकेबानने की एक साधारण रीति यह भी है कि मीठे मध पर हनारों पीटियां उग भाती हैं। ___ मूत्र में सार भी जुदा २ होता है और जब वह परिमाण से पिक वा कम माता है सभा सटास (पसिड)का माग नब अधिक जाता है तो उस से भी भनेक रोग उत्सम होते हैं, मूत्र में मानेवाले इन पदापों की जर अच्छी तरह परीक्षा हो जाती है तब रोगों की भी परीक्षा सहब में ही हो सकती है ।
मूत्र में जानेवाले पदापों की परीक्षा-मूत्रकी परीक्षा अनेक प्रकार से की माती है भात् कुछ पावें तो मूग को मांस से देखने से ही मासम होती का चीन रसायनिक प्रयोग के द्वारा पेलने से माछम होती। भौर कुछ पदार्थ सूक्ष्मदर्शक या के द्वारा देसने से मावस परवे है, इन चीनों प्रकारों से परीक्षा का कुछ विपम यहां म्सिा बाता है।
१-मांसो से देखने से भूत्र के जुदे २ रग की पहिचान से जुवे २ रोगों का पनुमान कर सकते हैं, नीरोग पुरुप का मूत्र पानी के समान साफ और कुछ पीडास पर (पीपन से युक)होसा, परन्तु मूत्र के साथ अब खून का माग जाता तब मूध ठास भवमा माछा दीससा है, यह भी सरण रसना पाहिले फिर्ष एक दवा क साने से भी मूत्रम रंग बदम बावा है, एसी दशा में मूत्रपरीक्षावारा रोग का नियम
1-से मप्रमों में पास मिलीम प्रवta