________________
४२७
चतुर्थ अध्याय ॥ नही करलेना चाहिये यदि मूत्रको थोडी देरतक रखने से उस के नीचे किसी प्रकार का जमाव हो जावे तो समझ लेना चाहिये कि-खार, खून, पीप तथा चर्वी आदि कोई पदार्थ मूत्र के साथ जाता है, मूत्र के साथ जब आल्ठ्युमीन और शकर जाता है तो उस की परीक्षा आखों के देखने से नहीं होती है इस लिये उस का निश्चय करना हो तो दूसरी रीति से करना चाहिये, इसी प्रकार यद्यपि मूत्र के साथ थोडा बहुत खार तो मिला हुआ होता ही है तो भी जब वह परिमाण से अधिक जाता है तब मूत्र को थोडी देरतक रहने देने से वह खार मूत्र के नीचे जम जाता है तब उस के जाने का ठीक निश्चय हो जाता है, रोग की परीक्षा करना हो तब इन निम्नलिखित वातो का खयाल रखना चाहिये:
१-मूत्र धुएंके रगके समान हो तो उस में खून का सम्भव होता है । २-मूत्र का रंग लाल हो तो जान लेना चाहिये कि-उस में खटास (एसिड) जाता है। ३-मूत्र के ऊपर के फेन यदि जल्दी न बैठें तो जान लेना चाहिये कि उस में आल्___ व्युमीन अथवा पित्त है। ४-मूत्र गहरे पीले रंग का हो तो उस में पित्त का जाना समझना चाहिये । ५-मूत्र गहरा भूरा या काले रंग का हो तो समझना चाहिये कि-रोग प्राणघातक है। ६-मूत्र पानी के समान बहुत होता हो तो मधुप्रमेह की शङ्का होती है, हिस्टीरिया
के रोगमें भी मूत्र बहुत होता है, मूत्रपर हजारों चीटिया लगे तो समझ लेना
चाहिये कि मधुप्रमेह है। ७-यदि मूत्र मैला और गदला हो तो जान लेना चाहिये कि उस में पीप जाता है। ८-मूत्र लाल रंग का और बहुत थोडा होता हो तो कलेजे के, मगज़ के और बुखार
के रोग की शंका होती है। ९-मूत्र में खटास अधिक जाता हो तो समझना चाहिये कि पाचनक्रिया में
बाधा पहुँची है। १०-कामले (पीलिये ) में और पित्त के प्रकोप में मूत्र में बहुत पीलापन और हरापन होता है तथा किसी समय यह रग ऐसा गहरा हो जाता है कि काले रंग की शका होती है, ऐसे मूत्र को हिलाकर देखने से अथवा थोड़ा पानी मिलाकर
देखने से मूत्र का पीलापन मालूम हो सकता है । २-रसायनिक प्रयोग से मूत्र में स्थित भिन्न २ वस्तुओं की परीक्षा करने से कई एक वातों का ज्ञान हो सकता है, इस का वर्णन इसप्रकार है:
१-इस का नियम भी यही है कि-जव मृत्र बहुत आता है तब वह पानी के समान ही होता है ।