________________
१३०
जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ कागम का रंग भी कम मत होगा, तात्पर्य यह है की सटास की न्यूनाभिकता के समान ही पागम के सार रंग की भी न्यूनाधिकता होगी ।
-सूक्ष्मदर्शक मन्म के द्वारा बो मूम्रपरीक्षा की जाती है उस में उपर लिखी हुई दोनों रीतियों में से एक भी रीति के करने की भापश्यकता नहीं होती है भर्षात् न तो आँसो झारा ध्यान के साथ देसार मूत्र के रंग मादि की जॉप करनी पड़ती है और न रसायनिक परीक्षा के द्वारा अनेक रीतियों से मूत्र में स्थित अनेक पदार्थों की गॉच करनी परसी है, किन्तु इस रीतिसे मूत्र के रंग भादि की तमा मूत्र में स्थित मौर मूत्र के साथ जानेनाले पदार्थों की बौध असिसुगमता से हो जाती है, परन्तु हाँ इस (सूक्ष्म वर्सफ) पत्र के वारा मूत्र में लित पदार्थों की ठीक दौर से गॉच कर लेना प्राप' उन्हीं के स्मेि सुगम है मिन को मूत्र में सित पदार्थों का सहप ठीक रीति से माउस हो, क्योंकि मिमित पदार्ष में सित वस्तुविशेप (सास पीन) का ठीक नियम कर सेना सहज वा सर्वसाधारण का श्रम नहीं है, यपपि यह मात ठीक कि-सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से भूत्र में मिमित तया सूक्ष्म पदार्थ भी उत्तररूप से प्रतीत होने लगता है माफि या दो मानना ही पड़ेगा कि-उस पदार्थ के स्वरूप को न बाननेवाग पुरुप उस का निमय कैसे कर सकता है, वैसे-सान्त के लिये यह कहा मा सकता है कि पालम्पुमीन के सरूप को गो नहीं जानता है वा सूक्ष्मदर्शक मन्त्र के द्वारा मूत्र में स्थित श्रामसम्ममीन को देख कर भी उस का नियम कैसे कर सकता है, तात्पर्य केवल यही है कि सूक्ष्मवर्षक पत्र के द्वारा वे ही लोग मूत्र में स्थित पदार्थों का निभय सान में कर सकते हैं जो कि उन (मूत्र में स्थित ) पदार्थों के खरूप को ठीक रीति से पानते हों। ___ या तो प्राय सब ही नानसे और मानते हैं कि वर्तमान समय में भपने देश के औषयों की अपेक्षा साक्टर गेग शरीर के आम्पम्वर ( मीतरी ) भागों, उन की क्रियाओं मौर उन में स्पिस पदामों से विशेष विन (जानकार), क्योंकि उन ने भरीर के भाम्फन्तर मागों के देसने मारुने मावि का प्रतिदिन प्रम परता है, इसलिये यह कहा जा सकता है कि-हाक्टर गेग सूक्ष्मदर्भक यन्त्र के द्वारा मूत्रपरीक्षा को अच्छे प्रकार से कर सकते हैं।
पहिलेकर पुके हैं कि-नस (सूक्ष्मदर्शक) मन्त्र के द्वारा बो मूत्रपरीक्षा होसी है या मूत्र में स्थित पवायों के लरूप के शान से विशेष सम्बन्म रसती है, इस दिमे सर्व साधारण गोग इस परीक्षा का महीं कर सकसे हैं, क्योंकि मूत्र में स्थित सम पदार्थों के सरूप का धान होना सर्वसापारण के म्मेि भसिवुवर (कठिन) है, मत सूक्ष्मदर्सक पत्र के द्वारा बस मूत्रपरीका करनी का करानी हो तर गक्टरों से परामी पाहिजे, पर्मात राष्टरों से मूत्रपरीक्षा करा के मूत्र में बानेवारे पवारों की न्यूनापिकता (कमी वा प्रमावती)मनिमय पर ववनुश्म उचित उपाय ना चाहिये ।