________________
४२४
चैनसम्प्रदानशिक्षा ॥
८ - वातकफ दोषवाले का मूत्र सफेद तथा मुद्बुदाकार (बुलबुले की सकळ का)
होता है।
९- कफपित्तवाले रोगी का मूत्र काल होता है परन्तु गवसा होता है । १०- अमीर्ण रोगी का सूत्र भांषकों के घोषन के समान होता है ।
११- नये बुखारवाले का सूत्र किरमची रंग का होता है तथा अधिक उतरता है । १२ - मूत्र करते समय यदि सूत्र की लाठ पार हो तो बड़ा रोग समझना चाहिये, फास्की धार हो यो रोगी मर जाता है, मूत्र में बकरी के मूत्र के समान गन्ध भाषे घो raीर्ण रोग समझना चाहिये ।
१२- मूत्रपरीक्षा के द्वारा रोग की साध्यासाध्यपरीक्षा - रोग साम (सद में मिटनेवाला) है, अथमा कष्टसाध्य (कठिनता से मिटनेवाला) है, अवश असाध्य ( न मिटनेवाला) है, इस की संक्षेप से परीक्षा लिखते है-पातकाल चार घड़ी के सड़के रोगी को उठाकर उस के मूत्र को एक काच के सफेद प्याले में सेना चाहिये परन्तु मूत्र की पहिली भौर पिछली बार नहीं देनी चाहिये भर्षात् मिचली ( बीकी) घार लेनी चाहिये तथा उस को खिर (बिना हिलाये हुकामे) रहने देन्द्र चाहिये, इस के बाद सूम की भूप में घण्टे भर तक उसे रख के पीछे उस में एक मास के तृण (विनके) से बीरे से तेल की बूद डालनी चाहिये, यदि वह तेल की बूंद डालते ही मूत्रपर फैल जाने तो रोग को साध्य समझना चाहिये, यदि बूंद न फैले भर्षात् ऊपर ज्यों की त्यों पड़ी रहे सो रोग को कटसाध्य समझना चाहिये तभा भवि यह बूंद अन्दर (मूत्र के तळे ) बैठ जावे अथवा अन्दर जाकर फिर ऊपर आकर कुण्डा की तरह फिरने मो अमवा मूंद में छेद २ पड़ जायें भगवा वह बूंद मूत्र के संग मिळ बागे वो रोग को असाम्य जानना चाहिये ।
दूसरी रीति से परीक्षा इस मकार भी की जाती है कि यदि तालाब, दस, छत्र, चमर, सोरम, कमल, हाथी, इत्यादि चिह्न दीखें तो रोगी बम आता है, यदि तलवार, दण्ड, कमान, सीर, इत्यादि शस्त्रों के चिह्न उस बूंद के हो जायें सो रोगी मर जाता है, यदि भूव में बुदबुदे उठे तो देवता का दोष जानना चाहिये इत्यादि, यह सब मूत्रपरीक्षा योग चिन्तामणि मन्य में किसी है सबा इन में से कई एक बातें अनुभव सिद्ध भी है क्योंकि फेवक अन्य के बांचने से ही परीक्षा नहीं हो सकती है, देखो! बुद्धिमानों ने मह सिद्धान्त किया है कि इन का करता उस्ताद और अनकरता शागिर्द होता है, अन्य के बांधने से केवल बायु पिच कफ खून तथा मिले हुए दोपों आदि की परीक्षा सूत्र के देखने से हो सकती है, किन्तु उस में जो २ विशेषतायें हैं वे यो नित्य के भम्यास और मुद्धि के दौड़ाने से ही काव हो सकती है ||