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जैनसम्प्रवासिया॥ अपितर (प्रवू ) में नहीं रहती है. भात् वह उसे बाहर निफास्ता है तब भी यह पॉपठी है, इस प्रकार फॉपती हुई बीम अत्यन्त निम्ता और मम की निशानी है। मामान्यपरीक्षा-बहुत से रोगों की परीक्षा करने में पीम धपणरूप है पगात् जीम की मिन्न २ वटा ही भिम २ रोगों को सूचित कर देती है, जैसे-देखो। बीम पर सफेव मे जमा हो सो पाचनक्ति में गावर समझनी चाहिये, जो मोटी और सूबी र दो तथा दाँतों के नीरे भा जाने स जिस में दाँतों का पिश बन जाने ऐसी जीम होजरी सभा मगनसन्तुमा में दार के होने पर होती है, बीम पर मीटा तमा पीछे रंग फा मे हो तो पिचरिफार बानना चाहिये, जीम में पाठापन तमा भूरे रंग न पड़त सराप चुसार के होने पर होता है, जीम पर सफर मेस का होना सापारम नुसार का निए दे, सूमी, मैतमानी फाग और फापसी र जीम इपीस दिनां की ममपियाने भर्महर समिपावज्वर फा निद है, एक तरफ गेषा फरती हुई पीभ भाभी जीम में पादी भाने का चिद है, जम जीम मड़ी पठिनता था अत्यत परिश्रम से पाहर निकले भोर रोगी की इच्छा के अनुसार अन्दर न पाये तो समझना चाहिये कि रोगी बहुत ही अफिदीन और दुदमापन (दशा को माठ ) हो गया है, महुत मारी रोग हो और उरा में फिर जीम कांपन गे तो पड़ा र समझना चाहिये, हैजा, दोगरी भौर फेससे की पीमारी में जम बीम सीसे फेरग समान झांसी दिसलाह देने तो सराम विक समझना चाहिये, यदि कुछ भासमानी रंग पी जीभ दिसलाई देने को समझना पाहिले कि स्यून पी पास में कुछ अपरोप (रुकायट) हुमा है, मह पर नारे भीर जीम सीसे रंग फे समान दो बारे सो पद मृत्यु के समीप दाने का चिए है, वायु के पोप से जीभ सरपरी फटी पुद तथा पीठी दोधी दे, पिच पोप से बीम छ २ मठ तथा कुछ पाली सी पा पाती है, फाप से जीभ सफेय भीगी हुई मोर नरम दोती है, खिोप से जीभ पटियाठी और सूमी हाती दे सभा मृत्युकस की जीभ सरसरी, अन्दर से मनी दुर, फेनराफी, उफडी के समान फरी और गतिरहित हो जाती है।
ननपरीक्षा-रागी नेया से भी रोग की परीक्षा होती है निसमा विपरम इस प्रकार है-पायु + पोप से नेश मम, निखेन, धूममण (धुएँ समान धूसर रंगा)। पास तथा वाहनारे होते हैं, पिस पदाप से नेप्र पीस, वाहबारे और पीपक भादि के उज का न सह सम्नेवारे होते ६, फफ दाप से नेत्र भीगे, सफेद, नरम, मन्द,
१-२ पापा हा पर स ग मतानगर निधा भपि: BARU M0