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चतुर्थ अध्याय॥
४१७ है वा चढ़ जाता है, सादे बुखार में वह पारा १०१ से १०२ तक चढ़ता है, सख्त बुखार में १०४ तक चढ़ता है और अधिक भयंकर बुखारमें १०५ से लेकर आखिरकार १०६३ तक चढता है, शरीर के किसी मर्मस्थान में शोथ (सूजन ) और दाह होता है तब बुखार की गर्मी बढ़कर १०८ तक अथवा इस से भी ऊपर चढ़ जाती है, ऐसे समय में रोगी प्रायः वचता नहीं है, खाभाविक गर्मी से दो डिग्री गर्मी बढ़ जाती है
और उस से जितना भय होता है उस की अपेक्षा एक डिग्री भी गर्मी जब कम हो जाती है उस में अधिक भय रहता है, हैजे में जब शरीर अन्त में ठंढा पड जाता है तव शरीर की गर्मी घट कर अन्त में ७७ डिग्री पर जाकर ठहरती है, उस समय रोगी का वचना कठिन हो जाता है, जबतक १०४ डिग्री के अन्दर बुखार होता है वहातक तो डर नहीं है परन्तु उस के आगे जब गर्मी बढती है तब यह समझ लिया जाता है कि रोग ने भयङ्कर रूप धारण कर लिया है, ऐसा समझ कर बहुत जल्दी उस का उचित इलाज करना चाहिये, क्योंकि साधारण दवा से आराम नहीं हो सकता है, इस में गफलत करने से रोगी मर जाता है, जब स्वाभाविक गर्मी से एक डिग्री गर्मी बढ़ती है तब नाडी के स्वाभाविक ठवकों से १० ठबके बढ़ जाते है, बस नाडी के ठवकों का यही क्रम समझना चाहिये कि एक डिग्री गर्मी के बढने से नाड़ी के दश दश ठबके बढ़ते है, अर्थात् जिस आदमी की नाडी आरोग्यदशा में एक मिनट में ७५ ठवके खाती हो उस की नाड़ी में एक डिग्री गर्मी बढ़ने से ८५ ठवके होते हैं तथा दो डिग्री गर्मी बढ़ने से बुखार में एक मिनट में ९५ बार धड़के होते है, इसी प्रकार एक एक डिग्री गर्मी के बढ़ने के साथ दश दश ठबके बढ़ते जाते है, जब बगल भीगी होती है अथवा हवा या जमीन भीगी होती है तब थर्मामेटर से शरीर की गर्मी ठीक रीति से नहीं जानी जा सकती है, इस लिये जब बगल में थर्मामेटर लगाना हो तब बगल का पसीना पोंछ कर फिर थर्मामेटर लगाकर पांच मिनट तक दवाये रखना चाहिये, इस के बाद उसे निकालकर देखना चाहिये, जिस प्रकार थर्मामेटर से शरीर की गर्मी प्रत्यक्ष दीखती हैं तथा उसे सब लोग देख सकते हैं उस प्रकार नाड़ीपरीक्षा से शरीर की गर्मी प्रत्यक्ष नहीं दीखती है और न उसे हर एक पुरुष देख सकता है । __ इस यन्त्र में बड़ी खूबी यह है कि-इस के द्वारा शरीर की गर्मी के जानने की क्रिया को हर एक आदमी कर सकता है इसी लिये बहुत से भाग्यवान् इस को अपने घरों में रखते है और जो नहीं रखते हैं उन को भी इसे अवश्य रखना चाहिये ॥
१-प्रिय मित्रो ! देखो !! इस ग्रन्थ की आदि में हम विद्या को सब से वढ कर कह चुके हैं, सो आप लोग प्रत्यक्ष ही अपनी नजर से देख रहे हैं परन्तु शोक का विषय है कि आप लोग उस तरफ कुछ भी ध्यान नहीं देते हैं, विद्या के महत्त्व को देखिये कि थर्मामेटर की नली में केवल दो पैसे का सामान है, परन्तु वुद्धिमान् और विद्याधर यूरोपियन अपनी विद्या के गुण से उस का मूल्य पाच रुपये लेते हैं, जिन्हों ने इस को निकाला था वे कोट्यधिपति (करोड़पति) हो गये, इसी लिये कहा जाता है कि-'लक्ष्मी विद्या की दासी है, ॥
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