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चतुर्थ अध्याय ।। पुरुष की नाडी दहिने हाथ की देखते है, इस का क्या कारण है ? (उत्तर) धर्मशास्त्र तथा निमित्तादि शास्त्रों में पुरुष का दहिना अंग और स्त्री का वायां अंग मुख्य माना गया है, अर्थात् निमित्तशास्त्र सामुद्रिक में उत्तम पुरुप और स्त्री के जो २ लक्षण लिखे है उन में स्पष्ट कहा है कि पुरुष के दहिने अंग में और स्त्री के वांय अंग में लक्षणो को देखना चाहिये, इसी प्रकार जो २ अंग प्रस्फुरण ( अगों का फडकना) आदि अंग सम्बन्धी शकुन माने गये हैं वे पुरुष के दहिने अग के तथा स्त्री के वायें अग के गिने जाते है, तात्पर्य यह है कि लक्षण आदि सब ही वातो में पुरुप से स्त्री में ठीक विपरीतता मानी जाती है, इसी लिये सस्कृत भाषा में स्त्री का नाम वामा है, अतः पुरुष का दहिना अग प्रधान है और स्त्री का वाया अग प्रधान है, इस लिये पुरुष के दहिने हाथ की और स्त्री की वायें हाथ की नाडी देखने की रीति है, बाकी तो दोनों हाथो में घोरी नस का किनारा है और वैद्यक शास्त्र में दोनो हाथो की नाडी देखना लिखा है । (प्रश्न) हम । ने बहुत से वैद्यो के मुख से सुना है कि-नाभिस्थान में बहुत सी नाड़ियो का एक गुच्छा कछुए के आकार का बना हुआ है, वह पुरुप के सुलटा ( सीधा) और स्त्री के उलटा मुख कर के रहता है इस लिये पुरुष के दहिने हाथ की और स्त्री के वाये हाथ की नाड़ी देखी जाती है । (उत्तर) इस बात की चर्चा मासिकपत्रो में अनेक वार छप चुकी है तथा इस बात का निश्चय हो चुका है कि-नाभिस्थान में नाडियों का कोई गुच्छा नहीं है, इस के सिवाय डाक्टर लोग (जो कि शरीर को चीरने फाडने का काम करते है तथा शरीर की रग रग से पूरे विज्ञ (वाकिफ) है ) कहते है कि-"यह वात विलकुल गलत है" भला कहिये कि ऐसी दशा में नाभिस्थान में नसो के गुच्छे का होना कैसे माना जा सकता है ? इस लिये बुद्धिमानों को अब इस असत्य वात को छोड देना चाहिये, क्योंकि प्रत्यक्ष में प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है ॥
त्वचापरीक्षा-त्वचा के स्पर्श से शरीर की गर्मी शर्दी तथा पसीने आदि की परीक्षा होती है, इस का सक्षेप से वर्णन इस प्रकार है१-दोष युक्त चमड़ी-वायुरोगवाले की चमड़ी ठंढी, पित्तरोगवाले की गर्म और
कफरोगवाले की भीगी होती है, यद्यपि यह नियम सर्वत्र नहीं होता है तथापि
प्राय ये (ऊपर लिखे ) लक्षण होते है। २-गर्म चमड़ी-पित्त और सब प्रकार के बुखारो में चमडी गर्म होती है, चमडी
की उष्णता से भी बुखार की गर्मी मालम हो जाती है परन्तु अन्तर्वेगी (जिस का वेग भीतर ही हो ऐसे ) ज्वर में बुखार अन्दर ही होता है इस लिये बाहर
की चमडी बहुत गर्म नहीं होती है किन्तु साधारण होती है, इस अवस्था (दशा) १-'प्रत्यक्षे किम्प्रमाणम्' इति न्यायात् ॥