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चतुर्थ अध्याय ॥ ऐसे भोले तथा नाडीपरीक्षापर ही परम श्रद्धा रखनेवाले जब किन्ही धूर्त चालाक और पाखण्डी वैद्यों के पास जाते है तो वे (वैद्य) नाडी देखकर बड़ा आडम्बर रचकर दो बातें वायु की दो बातें पित्त की तथा दो वातें कफ की कह कर और पाच पञ्चीस बातों की गप्पें इधर उधर की हकालते है, उस समय उनकी बातों में से थोड़ी बहुत बातें रोगी के चीतेहुए अहवालों से मिल ही जाती है तब वे भोले अज्ञान तथा अत्यन्त श्रद्धा रखनेवाले वेचारे रोगीजन उन ठगो से अत्यन्त ठगाते है और मन में यह जानते हैं कि-संसार भर में इन के जोडे का कोई हकीम नहीं है, वस इस प्रकार वे विद्वान् वैद्यों और डाक्टरोंको छोड़कर ढोंगी तथा धूर्त वैद्यों के जाल में फंस जाते है।
प्रिय पाठकगण ! ऐसे धूर्त वैद्यों से बचो! यदि कोई वैद्य तुम्हारे सामने ऐसा घमण्ड करे कि मैं नाडी को देखकर रोग को वतला सकता हूँ तो उस की परीक्षा पहिले तुम ही कर डालो, बस उस का घमण्ड उतर जावेगा, उस की परीक्षा सहज में ही इस प्रकार हो सकती है कि-पाच सात आदमी इकट्टे हो जाओ, उन में से आधे मनुष्य जीमलो (भोजन करलो) तथा आधे भूखे रहो, फिर घमण्डी वैद्य को अपने मकान पर बुलाओ चाहे तुम ही उस के मकान पर जाओ और उस से कहो कि-हम लोगों में जीमे हुए कितने है और भूखे कितने हैं ? इस बात को आप नाडी देखकर वताइये, बस इस विषय में वह कुछ भी न कह सकेगा और तुम को उस की परीक्षा हो जावेगी अर्थात् तुम को यह विदित हो जावेगा कि जव यह नाडी को देखकर एक मोटी सी भी इस वात को नहीं बता सका तो फिर रोग की सूक्ष्म वातों को क्या बतला सकता है। ___ बड़े ही शोक का विषय है कि-वर्तमान समय में वैद्यो की योग्यता और अयोग्यता तथा उन की परीक्षा के विषयमें कुछ भी ध्यान नहीं दिया जाता है, गरीबों और साधारण लोगों की तो क्या कहें आजकल के अज्ञान भाग्यवान् लोग भी विद्वान् और मूर्ख वैद्य की परीक्षा करनेवाले वहुत ही थोड़े (आटे में नमक के समान ) दिखलाई देते हैं, इस लिये सर्व साधारण को उचित है कि-नाड़ीपरीक्षा के यथार्थतत्त्व को समझें
और उसी के अनुसार वर्ताव करें, मूर्ख वैद्यों पर से श्रद्धा को हटावें तथा उन के मिथ्याजाल में न फंसें, नाड़ी देखने का जो कायदा हमने आर्यवैद्यक तथा डाक्टरी
१-पाच पच्चीस अर्थात् वहुतसी ॥ २-हकालते हैं अर्थात् हाकते हैं। ३-अहवालों अर्थात् हकीकतों यानी हालों॥ ४-जोडे का अर्थात् वरावरी का ॥
५-यद्यपि एक विद्वान् अनुभवी वैद्य जिस पुरुपकी नाडी पहिले भी देखी हो उस पुरुपकी नाडी को देखकर उक्त वात को अच्छे प्रकार से वतला सकता है क्योकि पहिले लिख चुके हैं कि भोजन करने के वाद नाडी का वेग वढ़ता है इत्यादि, परन्तु बूत और मूर्ख वैद्य को इन वातों की खवर कहाँ॥