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जेनसम्प्रदायशिक्षा ॥
मत से बिना दे उसे वाचफान्य अच्छीतरह समझें वधा इस बात का निश्चय कर कि रोग पेट में है, घिर में दे, नाक में है, पर कान में दे, इत्यादि बातें पूर्णतया नाही फे देखने से कभी नहीं मालूम पड़ सकती है, दो वेफ अनुभवी चिकित्सक रोमी की नाही, चेहरा, आंस, चेष्ठा और बात चीत आदि से रोगी की बहुत कुछ एकीकृत को जान सकता है तथा रोगी की विशेष हकीकत को सुने बिना भी बाहरी जांघ से रोगी का मुख्य रूप कर सकता है परन्तु इस से यह समझ लेना चाहिये कि मैच न सम परीक्षा नाड़ी के द्वारा ही कर ली है और हमेचा नाहीपरीक्षा सभी ही होती है, जो लोग नाडीपरीक्षा पर हमसे ज्यादा विश्वास रलकर ठगावे ई उन से हमारा इतना ही कहना है कि केपल (एफमात्र ) नाडीपरीक्षा से रोग का कभी आजतक न तो निश्श्रण हुआ न होगा भौर न हो सफता दें, इस लिये विद्वान् वैद्य वा डाक्टरपर पूर्ण विस रखकर उनकी यथार्थ आशा को मानना चाहिये ।
यह भी स्मरण रहे कि बहुत से मैच और डाक्टर छोग रोगी की प्रकृति पर बहुत दी थोड़ा सयाल करते हैं किन्तु रोग के बाहरी चिह्न और हकीकत पर विशेष आभार रख फर इलाज किया करते हैं, परन्तु इसवरद रोगी का भच्छा होना कठिन है, क्योंकि फोई रोगी ऐसे होते ६ कि ये अपने शरीर की पूरी हकीकत खुद नहीं जानते और इ किये वे उसे मतला भी नहीं सकते थे, फिर देखो ! भषेतना भर सन्निपात जैसे महा भयंकर रोगों में, एवं उन्माद, मूर्च्छा और मृगी आदि रोगों में रोगी के हेतु स् से रोग की पूरी दफीकत कभी नहीं माम दो सकती है, उस समय में नाड़ीपरीक्षा पर विक्षेप आधार रसना पड़ता है तथा रोगी की प्रकृखिपर इलाज का बहुत भागव ( भासरा) बेना दोता है और मक्कृति की परीक्षा भी नाड़ी आदि के द्वारा अनेक प्रकार से होती है, डाक्टर लोग जो मुँगली लेकर कदम या भड़का देते हैं वह भी नाहीपरीक्षा दी है क्योंकि हाथ के पहुँचे पर नाड़ी का जो ठपका है यह धमका भन भोर सून के प्रवाह का आखिरी धड़का है, शरीर में जिस २ जगह धोरी नस में सुब उछा है वहां २ अंगुठि के रखने से नाडीपरीक्षा हो सकती है, परन्तु अब सून फिरने में कुछ भी फर्क होता है तन पहिली पोरी नसों के अन्य भाग को स्यून का पोषण मिलना बंद होता है, अन्य सम नाड़ियों को छोड़ कर हाथ के पहुँचे की नाड़ी की ही जो परीक्षा की जाती है उस का हेतु यह है कि दान की जो नाड़ी है यह घोरी नस किनारा है, इस किये पहुँचे पर की नाही का भपका भंगुति को स्पष्ट मालूम देता है, इस छिपे ही हमारे पूर्षाचार्यों ने नाड़ी परीक्षा करने के छिये पहुँचे पर फी नाही को टीफ २ जगद टदराई है, पेरों में गिरिये के पास भी यही नाड़ी देसी जाती है क्योंकि यहां भी पोरी नस का किमारा दे, (प्रश्न) खी फी नाही मायें हाथ की देखते में और
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