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चतुर्थ अध्याय ॥
३६३ फरस की चीज़ो के बनानेवालो, पत्थर को घड़नेवालों, धातुओं का काम करनेवालो (लुहार, कसेरे, उठेरे और सुनार आदिको) कोयले की खान को खोदने वाले मजूरो, कपड़े की मिल में काम करनेवाले मजूरो, बहुत बोलनेवाली, वहुत फूकनेवालो और रसोई का काम प्रतिदिन करनेवालो का तथा इसी प्रकार के अन्य धन्धे (रोजगार ) करनेवालो का शरीर रोग के योग्य हो जाता है तथा इन की आयु भी परिमाण से कम हो जाती है ॥
८-प्रकृति-प्रकृति (खभाव वा मिजाज ) भी शरीर को रोग के योग्य बनानेवाला कारण है, देखो ! किसी का मिजाज ठढा, किसी का गर्म, किसी का वातल और वहुधा उत्तम २ जातियों में विवाह ठेके पर होता है अर्थात् सगाई करने से पूर्व इकरार (करार) हो जाता है कि-हम इतनी वडी वरात लावेगे और इतने रुपये आप को सर्च करने पडेंगे इत्यादि, उधर वेटी वाले वर के पिता से करार करा लेते हैं कि तुम को इतना गहना वीदणी को चढाना पडेगा, यह तो वडे २ श्रीमन्तों का हाल देखने में आता है, अब वाकी रह गये हजारिये और गरीव गृहस्थ लोग, सो इन में भी बहुत से लोग रुपया लेकर कन्या का विवाह करते हैं तथा रुपये के लोभ में पड कर ऐसे अन्धे वन जाते हैं कि वर की आयु आदि का भी कुछ विचार नहीं करते है अर्थात् वर चाहें साठ वर्ष का वुड्ढा क्यों न हो तो भी रुपये के लोभ से अपनी अवोध (अज्ञान वा भोली) वालिका को उस जर्जर के गले से वाध कर उस के लिये दु खागार का द्वार सोल देते है, सत्य तो यह है कि जब से यहा कन्याविक्रय की कुरीति प्रचलित हुई तव ही से इस भारतवर्ष का सत्यानाश हो गया है, हे प्रभो! क्या ऐसे निर्दयी माता पिता भी कन्या के माता पिता कहे जा सकते है ? जो कि केवल रुपये की तरफ देखते हैं और इस बात पर विलकुल ध्यान नहीं देते हैं कि दो वर्ष के वाद यह वुड्डा मर जायगा और हमारी पुत्री विधवा होकर दु खसागर मे गोते मारेगी या हमारे कुल को कलङ्कित करेगी, इस कुरीति के प्रचार से इस देश में जो २ हानिया हो चुकी हैं और हो रही हैं उन का वर्णन करने में हृदय विदीर्ण होता है तथा विस्तृत होने से उन का वर्णन भी पूरे तौर पर यहा नहीं कर सकते हैं और न उन के वर्णन करने की कोई आवश्यकता ही है क्योंकि इस की हानिया प्राय सुजनों को विदित ही हैं, अव आप से यहा पर यही निवेदन करना है कि हे प्रिय मित्रो! आप लोग अपनी २ जाति में इस वुरी रीति को विलकुल ही उठा देने (नेस्तनाबूद करने ) का पूरा २ प्रतिवन्ध कीजिये, क्योंकि यदि इस (खुरी रीति) को जड (मूल) से न उठा दिया जावेगा तो कालान्तर में अत्यन्त हानि की सम्भावना है, इस लिये इस कुरीतिको उठा देना और इन निम्न लिखित कतिपय बातों का भी ध्यान रखना आप का मुख्य कर्तव्य है कि जिस से दोनों तरफ किसी प्रकार का क्लेश न हो और मन न विगडे, जैसा कि इस समय हमारे देश में हो रहा है, जिस के कारण भारत की प्रतिष्ठारूपी पताका भी छिन्न भिन्न हो गई है तथा उत्तम २ वर्णवालों को भी नीचा देखना पडता है, इस विषय में ध्यान रखने योग्य ये वाते हैं१-वरात में बहुत भीड नहीं ले जानी चाहिये। २-वखेर या लूट की चाल को उठाना चाहिये। ३वागवहारी मे फजूल खर्ची नहीं करनी चाहिये । ४-आतिशवाजी मे रुपये को व्यर्थ में नहीं फूकना चाहिये। ५-रण्डियों का नाच कराना मानो अशुभ मार्ग की प्रवृत्ति करना है, इस लिये इस को भी