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चतुर्थ अध्याय ॥
४०५ हाथ के पीछे की तरफ से अंगूठे के नीचे के साधे के आगे चली जाती है उस से नाड़ी देखनेवाले के हाथ में नहीं लगती है तब देखनेवाला घवड़ाता है परन्तु यदि शरीर में खून फिरता होगा तो एक हाथ की नाडी हाथ में न लगी तो भी दूसरे हाथ की नाडी तो अवश्य ही हाथ में लगेगी, इस लिये दोनो हाथो की नाटी को देखना चाहिये। ३-हाथ पर अथवा हाथ के पहुँचे पर कोई पट्टी डोरा वा बाजूवंद आदि बँधा हुआ हो तो नाडी का ठीक ज्ञान नहीं होता है, क्योंकि बाधने से धोरी नस में खून ठीक रीति से आगे नहीं चल सकता है, इसलिये बन्धन को खोल कर नाड़ी देखनी चाहिये । ४-यदि हाथ को शिर के नीचे रख कर सोता हो तो हाथ को निकाल कर पीछे नाड़ी को देखना चाहिये । ५-डरपोक आदमी किसी डर से वा डाक्टर को देख कर जब डर जाता है तब उस की नाड़ी जलदी चलने लगती है इस लिये ऐसे आदमी को दम दिलासा देकर उस का दिल ठहरा कर अथवा वातों में लगाकर पीछे नाडी को देखना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने पर ही नाडी के देखने से ठीक रीति से नाडी का ज्ञान होगा। ६-आदमी को बैठाकर वा सुलाकर उस की नाडी को देखना चाहिये । ७-परिश्रम किये हुए पुरुष की तथा मार्ग में चलकर तुरत आये हुए पुरुष की नाड़ी को थोड़ीदेरतक बैठने देकर पीछे देखना चाहिये। ८-बहुत खूनवाले पुरुष की नाड़ी बहुत जलदी और जोर से चलती है । ९-प्रातःकाल से सन्ध्यासमय की नाडी धीमी चलती है। १०-भोजन करने के बाद नाडी का बेग बढ़ता है तथा मद्य चाह और तमाखू आदि मादक और उत्तेजक वस्तु के खाने के पीछे भी नाडी की चाल बढ़ जाती है। ___ इस प्रकार जब नीरोग मनुष्यों की नाडी में भी भिन्न २ स्थितियों और भिन्न २ समयों में अन्तर मालम पड़ता है तो वीमारों की नाडी में अन्तर के होने में आश्चर्य ही क्या है, इस लिये नाडीपरीक्षा में इन सब बातों को ध्यान में रखना चाहिये ।
नाड़ी में दोषों का ज्ञान-नाडी में दोषो के जानने के लिये इस दोहे को कण्ठ रखना चाहिये
तजनि मध्य अनामिका, राखु अंगुली तीन ॥
कर अँगूठ के मूल सों, वात पित्त कफ चीन ॥१॥ अर्थात् हाथ में अंगूठे के मूल से तर्जनी मध्येमा और अनामिका, ये तीन अंगुलियां १-क्योंकि दिनभर कार्य कर चुकने से सन्ध्यासमय मनुष्य श्रान्त (यका हुआ) हो जाता है और श्रान्त पुरुष की नाडी का धीमा होना खाभाविक ही है ॥
२-जिन को ऊपर लिख चुके हैं। ३-तर्जनी अर्थात् अगूठे के पासवाली अगुली ॥ ४-मध्यमा अर्थात् वीच की अगुली ॥ ५-अनामिका अर्थात् कनिष्ठिका (छगुनिया ) के पासवाली अगुली ॥