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चैनसम्प्रदामशिक्षा ||
सपत सौन तन चलत जॉन सी भारी नारी । साहि वैद्य मन घरें तौन सी रुधिर दुखारी ॥ भारी नाड़ी समयले स्थिरा पलवती जान । क्षुभाषन्त नाड़ी चपल स्थिरा वृष्ठिमय मान ॥ ९ ॥ १ - वायु की नाड़ी-सांप तथा चौक की तरह बांकी (टेढी) चस्ती है। २- पित्त की नाड़ी कोमा मा मैक की तरह कूदती हुई शीघ्र चकती है। ३ - फफ की नाड़ी-हंस कबूतर मोर और मुर्गे की सरह भीरे २ पकती है। ४ - वायुपिस की नाही -सांप की तरह टेवी तथा मेंडक की तरह फुदकती हुई चलती है।
५ - वातकफ की नावी-सांप की तरह टेकी उषा हंस की तरह भीरे २ चलती है। ६ - पित्तकफ की नाही - कोप की तरह कूदती तथा मोर की तरह मेव घटती है। ७ सन्निपास की नाड़ी की वहरने की करवत की तरह मा ठीवर पक्षी की तरह घम्सी २ अटक जाती है, फिर चलती है फिर अटकती है, मभवा वो सीन कुवके मार कर फिर लटक जाती है, इस प्रकार त्रिदोष ( सन्निपात ) की नाही विचित्र होती है
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विशेष विवरण- १ -पीमी पड़ कर फिर सरसर ( श्रीष २) भछने लगे उस नाड़ी को यो दोपों की जाने । २ - जो नाड़ी अपना स्थान छोड़ थे, जो नाही र २ कर ले, जो नाड़ी बहुत क्षीण हो तथा यो नाड़ी बहुत ठंडी पड जाने, यह चार तरह की नाही प्राणघातक है । १ - गुस्सार की नाड़ी गर्म होती है तथा बहुत जस्त्वन्ती है। 8- चिन्ता तथा डर की नाड़ी मन्द पड जाती है । ५ कामर और कोमातुर की माडी बस्वी वस्ती है । ६ – जिस का खून बिगड़ा हो उस की नाड़ी गर्म तथा परवर के समान धड़ और भारी होती है । ७ नाम के दोष की नाड़ी बहुत भारी भरती है। ८-गर्भवती की नाड़ी गहरी पुष्ट और इसकी चलती है । ९ मन्दामि मासुलीमा और नींद से युक्त सभा नींद से सुरख उठे हुए भासी मौर सुखी, इन सब की नाही स्थिर पकती है । १० - विक्षुषायुक्त की नाड़ी चंचल भी है । ११ - जिसको बहुत व गावे हो उस की नाड़ी बहुत अस्वी भक्ती है । १२ - मोसम के बाद नाही भीमी जस्ती है । ११-बो नाही टूट २ कर चले, काम में धीमी तथा क्षण में अस्वी चछे, बहुत जल्दी घले, बाड़ के समान करडी, स्थिर और टेही घले बहुत गर्म ले छवा अपने ठिकाने पर नकदी २ मन्य हो जाये, ये सब तरह की नाडिय माणनामके चिन्ह को दिलानेवाली है ॥