________________
१०६
मैनसम्प्रदायशिक्षा । नारी परीक्षामें लगानी पाहिमें और उन से कम से वात पित भौर में पहिमानना पोहिये ॥
नाडीपरीक्षा का निषेध-दिन २ समयों में मौर विन २ पुरुषों की नाही नहीं सनी चाहिये, उन के स्मरणार्थ इन दोहों को कण्ठ रसना चाहिये
तुरत नहाया जो पुरुप, अथषा सोया होय ॥ क्षुधा तृपा जिस को लगी, षा तपसी जो कोय ॥१॥ व्यायामी अरु थकित तन, इन में जो कोउ माहि ॥
नाड़ी देखे वैय जन, समुझि पर नरिवाहि ॥२॥ मात् बो पुरुष श्रीघ ही मान कर चुका हो, शीघ्र ही सोकर उठा हो, जिसने मूस वा प्यास नगी हो, वो सपश्चर्या में म्गा हो, यो शीघ्र ही व्यायाम (कसरत) कर चुका हो भोर विस का शरीर परिश्रम के द्वारा पक गया हो, इतने पुरुषों की नारी उछ समयों में नहीं देखनी चाहिये, यदि पैप पा सापटर इन में से किसी पुरुष की नारी देखेगा तो उस को उक समयों में नारी का शान मार्य कभी नहीं होगा। । स्मरण रखना चाहिये कि नादीपरीक्षा के विषय में परक समुव तथा निशान पासणों के पनाये हुए प्राचीन वैपक अन्मों में कुछ भी नहीं मिला है, इसी प्रकार प्राचीन मैन गुप्त (वैश्य ) पण्डिस वाग्मा ने भी नाड़ीपरीक्षा के विपय में मया
वय (वाग्मा) में कुछ भी नहीं मिखारे, सात्पर्य यही है कि पापीन वैयफ प्रन्यो में नाडीपरीक्षा नहीं है किन्तु पिछळे बुद्धिमान् ने यह युछि निकारी है बैसा कि इम प्रथम लिख चुके हैं, हो बेशक भीमजैनाचार्य हर्षकीपिंसरिकत मोगपिन्सामपि मावि का एक प्रामाणिक वैषक प्रन्यों में नारीपरीषा का वर्णन है, उस को हम यहां भापा छन्द में प्रकाशित करते हैं-सासर्व
पार्षनी गुम के नीच यो मार्ग ठपन ऐ रस से बात की पति से पी चामे मधमा भाषिके याचे जो पागल पत्रो रस से पित्त पति परिनामे तय मामिण मीनाचे नाती मधोरम से कफ की गति में परिवाने देसी पकानों में पार पपैयापपरी कम (ो पर पाप) मिया,क्योकि चासोका रही विमान्त है। अंगूठे के मूड में थे मी मान दान मगुपिया पाषा म्याई चीन में से प्रपम (तमे) भगुल्म के नीचे पाबुकी पग, मरी (मप्पमा) भगुरे पे पित्त नाग। वास (अनामिका) पनि माप की मारी, जिस प्रकार रप तीनों गणिों मारा गया योपोभ पविप्रपोप वा है उसी प्रभार से सच मगरिया केही द्वारा मिषित दोपों की मति प्रमा गोप समय से-पातपित्त मागतनी और मपमा केमाचे पीपातकप बाम भवामिनभौर वर्मनी के नीचे बन्चर, पित्तका माग मपम्वीर गवामित्र के नीचे पता वय समिपात श्रीनाड़ी पानो मानो के बीच जमवीरे