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बैनसम्पदाममिक्षा । ३-भरी नादी-जिस प्रकार नाड़ीपरीक्षा में भंगुरिया को नाडी का वेग मन्
पाल मास देती है उसी प्रकार नाटी प्रपनन ममना कर मी मालूम होता है, यह भजन ममना मन बन भाषश्यकता से अधिक वर जाता है तब उस को भरी नारी अपना बड़ी नाटी कहते हैं, जैसे-सून फे भराव में, पौरुप की वमा म, नुसार में तथा वरम में नारी भरी हुई मासम देती है, इस मरीइ नाड़ी स ऐसी हाम्त मासूम होती है कि शरीर में खून पूरा मोर बहुत है, जिस प्रकार नदी में मपिस पानी के आने से पानी का बोर पाता ह उसी पर खून के भराव नारी भरी गगती है। १-एलफी नाडी-भोरे खूनबाठी नाटीको छोटी या हलफी करते हैं, क्योंकि अगुति
के नीचे ऐसी नाही का कर पतला अर्थात् हठका गता है, बिन रोगों में किसी द्वार से खून बहुत चला गया हो या जाता हो ऐसे रोगों में, बहुत से पुराने रोगों में, हेचे में तथा रोग फवाने के बाद निमस्ता में नाड़ी पतनी सी मालम देती है इस नाड़ी से ऐसा मालूम हो जाता है कि इस के शरीर में खून कमी या बहुत कम गया है, क्योंकि नाही की गति का मुस्प मापार खून ही है, इस लिये खून केही बगन से माड़ी के१पर्ग किये जाते हैं-मरीहा, ममम, छोटी वा पतठी और पेमाराम, खून के विशेप बोर में भरीहुई, मप्पम खून में मप्यम तथा मोरे खून में छोटीप पचठी नाड़ी होती है, एवं हेने के रोग में खून निकुल नष्ट होपर नाड़ी मस्ती
के नीचे कठिनता से माधम पाती है उसको मालम नाही पहते हैं। ५-सका नाडी-मिस भोरी नस में होफर खून पाता है उसके भीतरी पर
की तातों में सनित होने की शक्ति भपिक हो जाती है, इस सिये नारी सस्त पन्ती है, परन्तु ना ही सकषित होने की शक्ति कम हो जाती हे तप नाडी रय पम्ती है, इन दोनों की परीक्षा इस प्रकार से है कि नारीपर तीन भगुनियों फोरस पर ऊपर की (सीसरी) भगुठि से नाटी को पाठे समय यदि बाकी की (नीरे दो भंगुलियों को पन लगे तो समझना चाहिये कि नाही सस्त है बोर वाना
भंगुलियों को पान न सगे तो नाड़ी को नरम समझना चाहिये। ३-अनियमित नाती-नानी की परिमाण के अनुस भाउ में यदि उसस
टनकों के भीम में एक सरस सममगिमाग चला मारे सा टसे नियमित नाही (कायदे के अनुसार पठनेपाली नारी) मानना पाहिय, परन्तु जिस समय फोहराम हो मोर नारी नियमविरुख (कायद) पछे अमाव समय विमाग ठीक न चम्ता । (पक टनका बची मापे भोर दूसरा मधिक देरता पर फर माम) उस नारी मनिममित नारी समझना चाहिये, जब एसी (मनियमित) नाही नम्ती हे तर