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चतुर्थ अध्याय ॥
४०९ ___ डाक्टरों के मत से नाडीपरीक्षा-हमारे बहुत से देशी मनुष्य तथा भोले
वैद्यजन ऐसा कहते है कि-"डाक्टर लोगो को नाडी का ज्ञान नहीं होता है और वे नाड़ी को देखते भी नहीं है" इत्यादि, सो उन का यह कथन केवल मूर्खता का है, क्योकि डाक्टर लोग नाडी को देखते है तथा नाडीपरीक्षा पर ही अनेक बातो का आधार समझते है, जिस तरह से बहुत से तवीब नाडीपरीक्षा में बहुत गहरे उतरते है (बहुत अनुभवी होते हैं) और नाडी पर ही बहुत सा आधार रख नाड़ीपरीक्षा के अनुभव से अनेक बातें कह देते है और उन की वे बातें मिल जाती है तथा जैसे देशी वैद्य जुदे २ वेगों की-नाड़ी के वायु की पित्त की कफ की और त्रिदोष की इत्यादि नाम रखते है, इसी तरह डाक्टरी परीक्षा में जल्दी, धीमी, भरी, हलकी, सख्त, अनियमित और अन्तरिया, इत्यादि नाम रक्खे गये है तथा जुदे २ रोगो में जो जुदी २ नाड़ी चलती है उस की परीक्षा भी वे लोग करते है, जिस का वर्णन सक्षेप से इस प्रकार है:१-जल्दी नाड़ी-नीरोगस्थिति में नाडी के वेग का परिमाण पूर्व लिख चुके है,
नीरोग आदमी की दृढ़ अवस्था की नाड़ी की चाल ७५ से ८५ वारतक होती है, परन्तु बीमारी में वह चाल बढ़ कर १०० से १५० वारतक हो जाती है, इस तरह नाडी का वेग बहुत बढ जाता है, इस को जल्दी नाडी कहते है, यह नाडी क्षयरोग, लू का लगना और दूसरी अनेक प्रकार की निर्वलताओ में चलती है, झडपवाली नाडी के सग हृदय का ववकारा वहुत जोर से चलता है और नाडी की चाल हृदय के धवकारों पर ही विशेष आधार रखती है, इस लिये ज्यों २ नाडी की चाल जल्दी २ होती जाती है त्यों २ रोग का जोर बहुत वढता जाता है और रोगी का हाल विगडता जाता है, बुखार की नाडी भी जल्दी होती है तथा ज्वरात (ज्वर से पीडित ) रोगी का अग गर्म रहता है, एव सादा बुखार, आन्तरिक ज्वर, सन्निपात ज्वर, सांधों का सख्त दर्द, सख्त खासी, क्षय, मगज़, फेफसा, हृदय होजरी और आतें आदि मर्म स्थानों का शोथ, सख्त मरोडा, कलेजे का पकना, आंख तथा कान का पकना, प्रमेह और सख्त गर्मी की टाकी आदि
रोगों की दशा में भी जल्दी नाडी ही देखी जाती है। २-धीमी नाड़ी-नीरोगावस्था में जैसी नाड़ी चाहिये उस की अपेक्षा मन्द चाल
से चलनेवाली नाडी को धीमी नाडी कहते है, जैसे-ठढ, श्रान्ति, क्षुधा, दिलगीरी, उदासी, मगज की कई एक बीमारिया ( जैसे मिरगी बेशुद्धि आदि) और तमाम रोगों की अन्तिम दशा में नाडी बहुत धीमी चलती है।