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चतुर्थ अध्याय ||
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स्थान में वार २ परिवर्तन ( उथलपुथल ) हुआ करता है, इसलिये स्त्री का निर्बल शरीर रोग के योग्य होता है, वर्तमान में स्त्रीजाति की उत्पत्ति पुरुषजाति से तिगुनी दीखती है तथा स्त्रीजाति पुरुषजाति की अपेक्षा अधिक मरती है, यही कारण है कि एक एक पुरुष तीन २ चार २ तक विवाह किया करते है ||
दूध दही से जमत है, काजी से फट जाय" ॥ १ ॥ ऊपर लिखी हुई वातों के मिलाने के अतिरिक्त यह भी देखना उचित है कि जो लडका ज्वारी, मद्यप ( शरावी), वेश्यागामी ( रण्डीवाज ) और चोर आदि न हो किन्तु पढा लिखा, श्रेष्ठ कार्यकर्त्ता और वर्मात्मा हो उसी से कन्या का विवाह करना चाहिये, नहीं तो कदापि सुख नहीं होगा, परन्तु अत्यन्त शोक का विषय है कि वर्तमान समय मे इस उत्तम परिपाटी पर कुछ भी ध्यान न देकर केवल कुभ मीन आदि का मिलान कर वर कन्या का विवाह कर देते है, जिस का फल यह होता है कि उत्तम गुणवती कन्या का विवाह दुर्गुण वाले वर के साथ अथवा उत्तम गुणवाले पुत्र का विवाह दुर्गुणवाली कन्या के साथ हो जाने से घरों में प्रतिदिन देवासुरसग्राम मचा रहता है, इन सब हानियों के अतिरिक्त जब से भारत में वालहत्या के मुख्य हेतु वालविवाह तथा वृद्धविवाह का प्रचार हुआ तब से एक और भी खोटी रीति का प्रचार हो गया है और वह यह है कि लडकी के लिये वर खोजने के लिये-नाई, वारी, वीवर, भाट और पुरोहित आदि भेजे जाते हैं, यह कैसे शोक की बात है कि—अपनी प्यारी पुत्री के जन्मभर के सुख दुख्न का भार दूसरे परम लोभी, मूर्ख, गुणहीन, स्वार्थी और नीच पुरुषों पर डाल दिया जाता है, देखो। जब कोई पुरुष एक पैसे की हाडी को भी मोल लेता है तो उस को खूब ठोक वजा कर लेता है परन्तु अफसोस है कि इस कार्य पर कि जिस पर अपने आत्मजों का सुख निर्भर है किञ्चित् भी ध्यान नहीं दिया जाता है, सुजनो ! यह कार्य ऐसा नहीं है कि इस को सामान्य बुद्धिवाला मनुष्य कर सके किन्तु यह कार्य तो ऐसे मनुष्य के करने का है कि जो विद्वान् तथा निर्लोभ हो और ससार को खूब देखे हुए हो, क्या आप इन नाई वारी भाट और पुरोहितों को नहीं जानते हैं कि ये लोग केवल एक एक पैसे पर प्राण देते हैं, फिर उन की बुद्धि की क्या तारीफ करें, उन की बुद्धि का तो साधारण नमूना यही है कि चार सभ्य पुरुषों में बैठ कर वे बात तक का कहना भी नहीं जानते हैं, न तो वे कुछ पढे लिखे ही होते हैं और न विद्वानों का ही सग किये हुए होते हैं फिर भला वे लोभरहित और वुद्धिमान् कहा से हो सकते हैं, देखो ! ससार में लोभ से वचना अति कठिन काम है क्योंकि यह वडा प्रवल ग्रह है, इस ने बढे २ विद्वान् तथा महात्माओं को भी सताया है तथा सताता है, इसी लोभ मे आकर औरगजेव ने अपने पिता और भ्राता को भी मार डाला था, लोभ के ही कारण आजकल भाई भाइयों में भी नहीं बनती है, फिर भला उन का क्या कहना है कि जो दिन रात धन ही की लालसा मे लगे रहते हैं और उस के लिये लोगों की झूठी खुशामदें करते हैं, उन की तो साक्षात् यह दशा देखी गई है कि चाहें लडका काला और कुवडा आदि कैसा ही क्यों न हो किन्तु जहा लडके के पिता ने उन से मुट्ठी गर्म करने का प्रण किया वा खूब आवभगत से उन को लिया त्यों ही वे लोग लडकी वाले से आकर लडके की तथा कुल की बहुत ही प्रशसा करते हैं अर्थात् सम्बध करा ही देते हैं, परन्तु यदि लड़केवाला उन की मुट्ठी को गर्म नहीं करता है तथा उन की आवभक्ति नहीं करता है तो चाहें लडका
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