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जनसम्प्रदायशिक्षा ॥ मास से रोगों में मायः विहार ( विषयभाग) की इच्छा कम होने के बदले अधिक हो पाती है, जैसे-क्षयरोगी फो नारयार बिहार की इच्छा तुमा करती है, यह इस साभाषिक नदी है किंतु यह (उच) रोग दी इस इच्छा को जन्म देता दे इस लिये धम रोगी को सावधानी रखनी पादिमे ।
पिहार फे पिपस में परस्सर की बारीरिफ प्रति का भी विचार करना चाहिये, पाकि मह बात ही भायात्यक मात है, सी पुरुष को इस पिपम में उम्पट पन पर रेत साथी नहीं होना चाहिये, तात्पम यह है कि पुरुष फो नी की वकिप भोर स्त्री ने गुरुप की पति का विचार करना चाहिये, यदि मी पुरुष के जोड़े में एक तो निक्षेप घल्यान् हो भौर दूसरा यिशेप नित दो दो पद अनपद सरानी या मूस है, परन्तु यदि भाम्ययोग से ऐसा ही बोरा जाये तो पीछे परस्पर * हित का पिपार क्या नहीं करना चाहिये भात् अपश्म करना चाहिये । ___ मत से पिचाररहित मम पुरुप विहार फे पिपय में स्त्रीवातिपर अपने हक का पाया फरते ई भीर ऐसे विचार फे पारा पाने का मनुचित उपयोग कर के सी को वाचार पर परपस करते हैं, सो मा भत्यन्त अनुचित है, क्योकि येसो ! सी पुरुष का परस्सर मापार एफ शारीरिक धम है और धर्म में एफचरफी हफ फा समास नहीं रहता है किन्तु दोना परापर हकदार है भौर परस्पर फे सुख फेरिये दोनों दम्पती धर्म में थे गुर इस लिये भी भार पुरुष को परस्सर फी अफिमा मनुस्मता का भपश्म विचार करना
पादिये। __५-मानसिक स्थिति-योना में से मवि किसी का मन पिम्सा, भम, साफ माध और भय से म्याफर हो रहा हो घो एसे मटिका समय में बिहार सम्पन्धी कोई भी पेशा नही करनी भाहिमे, परन्तु अत्यन्त सेव का विसर दे भि-पधमान समय में खी पुरुप इस विषय फा भाव ही फग विपार पर है।
इच्छा के पिना पलास्कार से किया एभा कम सन्तोपवामक नही पोषार और भर्स भोप शारीरिफ सपा मानसिक विकार का कारण होता है, इस लिये इच्छा के बिना जो विहार फिया पाता ह पद निष्फल होता है भार उसटा शरीर को विगारमा दे, इस सिमे इस पात को छत पदों में ध्यान में रखना चाहिये, यह भी सारण रदे सिमीकी इच्छा के पिना खीगमन करने में मार दास से पीर्यपात करने में सिमाम फर नहीं है, इस म्पेि दाम में मारा पीमपात की भिमा को भी गमपर भी नही परमा प्राहिये, पण के पिना सयोग थाने से काम की शान्ति नही होती है किन्तु उसटी काम की पविही नम्मापार
पनि सकिन 50 पनन भाग पाम पारगमन मापामा।