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जेनरामदामशिक्षा |
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का बहुत कुछ। निर्मम हो सकता है इस परीक्षा में बहुत से दक्षनीय सूसरे भी विषय जाते हैं, बेरी-रूप अर्थात् चेहरे का देखना, स्वभा ( घमड़ी), नेत्र, जीभ, मल (दस्त ) और मूत्र आदि के रंग को देखना तथा उन के घूसरे चिह्नों को देखना, इत्यादि । इन सब के दर्शन से भी रोगपरीक्षा हो सफखी है, मभपरीक्षा में यह होता है कि-रोगी क हकीकत को सुन कर सभा पूछ कर आवश्यक बातों का शान होकर रोग का न दो जाता है, अब इन चारों परीक्षाओं का विशेष वर्णन किया जाता है
प्रकृतिपरीक्षा ॥
शास्त्र
edu गुरुता पर्णनीय विषय यात पिप और फफ, और इन्हीं पर वेधक शास्त्र का आधार है, नाडीपरीक्षा में भी मे दी धीनां इस किये इन तीनों विषयों का विचार पहिले किया जाता है
माड़ी आदि की परीक्षा के नियम पर आने से पहिले यह जानना परम आवश्यक है कि प्रत्येक दो पाठी मकृति का क्या २ स्वरूप होता है, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य को अपनी २ मवि (वासीर) से नाकिफ होना बहुत ही जरूरी है, देखो ! हमारी मकवि छान्त देमा सामसी (मोगुण से युक्त ) है इस बात को तो मायः सब ही मनुष्य आप भी मानते हैं तथा उन के सहयासी (साथ में रहनेपाले ) इष्ट मित्र भी जानते है, परन्तु बेवफात के नियम के अनुसार हमारी प्रकृति पात की है, मा पिच की है, वा कफ की है, ना रफ की है, अथमा मिश्र (मिसीहुई ) दे, इस मास को मत भाई ही पुरुष जानते है, इस के न जानमे से खान पान के पदार्थों के सामान्य गुण और दोषों का होने पर भी उस से कुछ समभ नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य जब अपनी महति को जान लेता है राम इस के पाव खान पान के पदार्थों के सामान्य गुण क्षेत्र को जान कर तथा अपनी मरुति क अनुसार उन का उपयोग कर अपनी भारोम्पा को फाग रख सकता है तथा रोग हो जाने पर उन का इलाज भी स्वयं ही पर रापता है।
प्रकृति की परीक्षा में इतनी विशेषता है कि इसका ज्ञान दोने से दूसरी भी बहुत सी परीक्षाएँ सामान्यतया जाती जा सकती है, देखो! यह सब ही जानते हैं कि आदमियों में बात पिए फफ और सून अपश्य होते हैं परन्तु पे ( पास आदि ) सब समान मर्द होते हैं भभारा किसी के शरीर में एक प्रधान होता है क्षेत्र गौण (भमभान ) होत है, किसी के शरीर में दो प्रधान होते है क्षेत्र गोण होते है, भ हग में यह जान लेना चाहिये कि जिस मनुष्य का जो दपि प्रधान होता है उसी दोष के से उसकी
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मे सीन ही हैं उपयोगी है
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बड़ी पर उमित करना माग र रिना है રાત વિત્ત બધી વાતની જાનમાં (ૉને ી વાવીએ ત
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