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जैनसम्पदापतिक्षा ॥ वोप के और प्रकृति के आपस में कुछ सम्बन्ध है या नहीं। यह एक बहुत ही भावश्यक प्रभ है, इस का उत्तर यही है कि-दोप फा मावि के साथ मत्यन्त पनि सम्बन्ध है भर्थात् जिस मनुष्य की प्रकृति में जो दोष मधान होता है वही दोष उस मनुष्य की प्रकृति कहा जाता है और यहुया उस मनुष्य के उसी दोप के कोप से रोन होता है, जैसे यदि कोई रोगी पुरुप पायुप्रधानमति का है तो उस के ज्वर भादि का कोई रोग होगा यह (रोग) पापुसप वोप के साभ विक्षेप सम्बन्ध रखनेराम होग इसी प्रकार पिस और कफ यादि के विषय में भी समझना चाहिये । ___ अग स्पावादमस के अनुसार इस विपय में दूसरा पक्ष विसलाते है रोग सदा शरीर की मूल प्रकृति के ही अनुसार होता हो यही एकान्त निधय नहीं है, क्योकि अनेक समयों में ऐसा भी होता है कि रोगी की मूम्मति पिच की होती है भार राम का कारण वायु होता है, रोगी की प्रति पायु की होती है भीर रोग का कारण पिच होता है, इस प्रकार महुत से रोग ऐसे हैं जो कि महति से विपुल सम्पन्न नहीं रखते हैं सो भी रोगी के रोग की परीक्षा फरने में और उस का इगज करने में रोगी फी मात फा पान होना पहुत ही उपयोगी है ।
स्पर्शपरीक्षा ॥ शरीर के किसी भाग पर हाथ से अथवा नसरे यन्य (ओमार ) से स्पर्श कर र दर्याफ्स फरना कि इस फेरीर में गर्मी की भी फी, खून की तमा चासोवास मिमा फितने अन्दामन है, इसी को स्पर्शपरीक्षा मानी है, इस परीक्षा में नाडीपरीक्षा त्पपापरीक्षा, धर्मामेटर (सरीर की गर्मी मापने की नसी) भौर स्टेथोसोप (छाती म लगाकर भीतरी विकार को दर्याफ्त करने की नसी) फा समावेश होता है।
स्पर्शपरीक्षा का सब से पहिला तथा पच्छा सापम तो दाग ही रे, क्योकि रोमन परीक्षा में हाम पहुस सहायता देता है, सो ! घरीर गर्म है, या ठंठा है, अागमा खरलय है, शरीर के अन्दर का भमुफ भाग नरम है, पोग है, मा कठिन है, वा मन्दर । भाग में गांठ है, अथवा रोष है, इत्यादि सम पावें हाथ के द्वारा स्पर्श करने से मार दी मारम होजाती है, नाडीपरीक्षा भी हाथ से ही होती है मो कि रोग की परीक्षा पा उपम साधन है, क्योंकि नारी के वेसने से शरीर में स्विनी गर्मी पा शहे तथा मान सा दोष कितने भैस में फपित है इत्यादि पातो शान सीम ही हो जा सकता ७ देसो! भनुमची पभोर हकीम अपने अनमम और अभ्यास से सरीर की गर्मी कोजा नाड़ी पर भेगुसियां रखकर निस्सन्देह कह देते हैं मर्यात् बर्मामेटर लिखना फाम करत्य दे गमग उतना दी काम उन का चतुर हाम और मनुमपपासी भंगुश्मिा र सम्सी है।
-सत्र से तो पोप न ही माम तो प्रति