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चतुर्थ अध्याय ॥
३८१ होती है और ऐसा होने से यह वडी हानि होती है कि स्त्री का रज जिस समय पक होना चाहिये उस की अपेक्षा शीघ्र ही अर्धपक ( अधपका) होकर गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाता है और वहा पुरुष के वीर्य के प्रविष्ट होने से कच्चा गर्भ वध जाता है।
६-पवित्रता-विहार के विषय में पवित्रता अथवा शारीरिक शुद्धि का विचार रखना भी बहुत ही आवश्यक बात है, क्योंकि स्त्री पुरुषो के गुप्त अंगो की व्याधि प्राय स्थानिक अपवित्रता और मलीनता से ही उत्पन्न होती है, इतना ही नहीं किन्तु यह स्थानिक मलीनता इन्द्रियो को विकारी (विकार से युक्त) बनाती है, परन्तु बड़े ही सन्ताप की बात है कि इस प्रकार की बातो की तरफ लोगो का बहुत ही कम ध्यान देखा जाता है, इसी का जो कुछ परिणाम हो रहा है वह प्रत्यक्ष ही दीख रहा है किचादी, सुजाख और गर्मी जादि अनेक दुष्ट और मलीन व्याधियो से शायद कोई ही भाग्यवान् जोड़ा बचा हुआ देखा जाता है, कहिये यह कुछ कम खेद की बात है ? ___ शरीर के अवयवो पर मैल जम कर चमडी को चञ्चल कर देता है और अज्ञान मनुष्य इस चञ्चलता का खोटा खयाल और खोटा उपयोग करने को उस्कराते है, इस लिये स्त्री पुरुषों को अपने शरीर के अवयवो को निरन्तर पवित्र और शुद्ध रखने के लिये सदा यत्न करना चाहिये, यद्यपि ऊपरी विचार से यह बात साधारण सी प्रतीत होती है परन्तु परिणाम का विचार करने से यह बड़े महत्त्वकी बात समझी जा सकती है, क्योकि पवित्रता शारीरिक धर्म का एक मुख्य सद्गुण "गुडकालिटी" है, इसी लिये बहुत से धर्मवालों ने पवित्रता को अपने २ धर्म में मिला कर कठिन नियमों को नियत किया है, इस का गम्भीर वा मुख्य हेतु इस के सिवाय दूसरा कोई भी नही हो सकता है कि पवित्रता ही सव सद्गुणो और सद्धर्मों का मूल है।
७-एकपत्नीव्रत-अपनी विवाहिता पत्नी के साथ ही सम्बन्ध रखने को एकपत्नीव्रत कहते है, विचार कर देखा जाये तो यह (एकपत्नीव्रत) भी ब्रह्मचर्य का एक मुख्य अग और गृहस्थाश्रम का प्रधान भूषण है, जो पुरुष एकपलीव्रत का पालन करते है वे निस्सन्देह ब्रह्मचारी है और जो स्त्रिया एकपतिव्रत का पालन करती हैं वे निस्सन्देह ब्रह्मचारिणी है, स्त्री के लिये एक ही पुरुष का और पुरुष के लिये एक ही स्त्री का होना जगत् में सब से बड़ी नीति है और इसी पर शारीरिक और व्यावहारिक आदि सर्व प्रकार की उन्नति निर्भर है। - इस नियम के उल्लघन करने से अर्थात् व्यभिचार से न केवल व्यावहारिक नीति का ही भग होता है किन्तु शारीरिक नीति और आरोग्यता की भी हानि होती है इस लिये इस महाहानिकारक विषय को अवश्य छोडना चाहिये, इस विषय का यदि अच्छे प्रकार