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जेनसम्प्रदायशिक्षा ॥ __ तमाखू के संपने से-मठीनठा होती है, कपड़े सराम होते है सपा भनक प्रकारक रोग भी ठस्पम हाते हैं।
पास मोर प्रफी म्पसन से भी न पीने के समान रनि होती है, क्योंकि इस में मी पाहा २ नसा होता है, यह मधिक गर्म और ना दोन के कारण रूसी मोर कम सुराम मानेवाले गरीन लोगों ने बहुत हानि पहुंचाती है तमा इस के सेवन स मगन भोर उम के मानवन्तु निर्दल हे जाते ६॥
१०-पिपयोग-पहिले ठिस जुलि मनि अमम पस्तु साने पीने में मा जाये मथना परस्पर (एक से दूसरा) विरुद्ध पदाध माने में आ जान तो मह घरीर में विप क समान हानि करता है, इसके सिवाय जो भनेक प्रकार के निस भी पेट में जाकर हानि करते है, एक प्रकार की रिपेठी (निपमरी) मा मी होती है जिस से बुम्मार, पाण्दु भीर मराठा आदि रोग होते है।
श्रीसे और वरि के पेट में जान स पूंजरा जाती है, मत्सनाग (सिंगिया) पेट में जान से मूच्छा सपा दार होठा हे मोर सोमठ सभा रसकपूर के पेट में जान से इसके मन्मन सुक बाद, तपय यह कि सपही प्रकार के विष पेट में बाबर हानि ही करते है।
११-रसविफार-ठम्, पेक्षान, पसीना, यूक और पित आदि पार्य समिर से उत्पन्न दाई आभा इन सवों को उरीर का रस करते है, यह रस जन आवश्यकता में न्पून बा भपिफ होकर घरीर में रहता है तय हानि परतारे, स-पदि पसीना न निकले ठो भी रानि करता है और पदि बावश्यम्या से भषिक निकड तो भी हानि करता है, इसी तरह दम् भादि विषय में भी समझ लेना राहिय, यदि पेक्षाप कम हो तो पछाप के रास्त से बा हानिकारक भष्ठ पाइर निकलना चाहिये बह निकल नहीं सकता है तथा खून में जमा हो जाता है और अनेक हानियों को करवा दे, मदि पंचानन होना बिल्कुल ही बन्द हा आप सा पाणी शीघ्र ही मर जाता है, देसाईना भीर मरी राग में प्राप' पन्नान कर ही मृत्यु होती , मदुत पसीना, बहुत दिनो का मसीसार, मस्सा, माऊ स गिरता हुभा खून ठभा सिर्मा का प्रदर इत्यादि करते हुए प्रबाह का एक दम पन्द्र पर दने से हानि हाती, पित्त पन स पिचके रोग होते है भोर लारस के सत्रय स सभा में पद हा जाता है।
१२-जीष-जीर भर्मात् समि वा जन्तु से कण्ठमान, पास रक, यमन, मृगी, मतीसार तथा पमड़ी भनक रोग उत्पम होत है।
भी ममयों भमान पर माता