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चतुर्थ अध्याय ॥
३८७ प्रकृति के प्रतिकूल अथवा बहुत गर्म वा बहुत ठढे पदार्थ के खाने से जठरामि बिगडती है, वैसे ही अधिक विषय सेवन से भी शरीर का सत्त्व कम होकर पाचनशक्ति मन्द पड़ती है, इस मन्दाग्नि का यदि शीघ्र ही इलाज न किया जावे तो इस (मन्दामि ) से कम से अनेक रोग पैदा होते हैं, जैसे देखो:
१-मन्दाग्नि से अजीर्ण होता है, अजीर्ण से दस्त होते है, दस्तों से मरोड़ा होता है, मरोड़े से सग्रहणी होती है, सग्रहणी से मस्सा ( हरस ) होता है, मस्सा से पेट का दर्द अफरा और गुल्म (गोले) का रोग होता है । ___२-शर्द गर्मी (जुखाम )- यद्यपि यह एक छोटा सा रोग है तथा तीन चार दिनतक रह कर आप से ही मिट जाता है परन्तु किसी २ समय जब यह शरीर में जकड जाता है तो बड़े २ भयकर रोगों का कारण बन जाता है, जैसे-इस में खाने पीने की हिफाजत न रहने से दोष बढ़ कर खासी होती है और कफ बढ़ता है, उस से फेफसे में हरकत पहुचकर आखिरकार क्षय रोग के चिह्न प्रकट होते हैं तथा पीनसरोग भी जुखाम से ही होता है। ____३-अजीर्ण-अजीर्ण भी एक ऐसा साधारण रोग है कि वह मनुष्यों को प्रायः बना रहता है तथा वह आप ही सहज और साधारण उपाय से मिट भी जाता है, हां यह बात अवश्य है कि जहातक शरीर में ताकत रहती है वहातक तो इस की अधिक हरकत नहीं मालूम पडती है परन्तु नाताकत मनुष्य के लिये साधारण भी अजीर्ण बड़े २ रोगों का कारण बन जाता है, जैसे देखो । अजीर्ण से मरोड़ा होता है, मरोड़े से सग्रहणी जैसे असाध्य रोग की उत्पत्ति होती है तथा हैजे और मरी को बुलानेवाला भी अजीर्ण ही है। ___ इस में बडी भयकरता यह है कि यदि इस का इलाज न किया जाये तो यह (अजीर्ण) जीर्ण रूप पकड़ता है और शरीर में सदा के लिये घर बना लेता है। __ अजीर्ण से प्राय बहुत से रोग होते हैं जिन में से मुख्य रोग ये है--कृमि, बुखार, चूक, दस्त की कब्जी आदि।
४-बुखार-बुखार से तिल्ली, जीर्णज्वर, शोथ, अरुचि, कास, श्वास, वमन और अतीसार आदि। ___-कृमि कृमि रोग से हिचकी, हृदय का रोग, हिष्टीरिया, शिर का दर्द, छींक, दस्त, वमन और गुमडे आदि रोग होते हैं।
६-धातुविकार-धातुविकार से असाध्य क्षय रोग होता है, यदि उस का उपाय १-इस को अंग्रेजी में टिमपेप्मिया कहते है ॥