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चतुर्थ अध्याय ॥
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शरीर में निर्बलता अपना घर कर लेती है, इसी प्रकार शक्ति से बाहर पढ़ने लिखने तथा बाचने से, बहुत विचार करने से और मन पर बहुत दवाव डालने से कामला, अजीर्ण, वादी और पागलपन आदि रोग उत्पन्न होते है !
स्त्रियों को योग्य कसरत के न मिलने से उनका शरीर फीका, नाताकत और रोगी रहता है, गरीब लोगों की स्त्रियों की अपेक्षा द्रव्यपात्र तथा ऐश आराम में सलग्न लोगों की स्त्रिया प्रायः सुख में अपने जीवन को व्यतीत करती है तथा विना परिश्रम किये दिनभर आलस्य में पडी रहती हैं, इस से बहुत हानि होती है, क्योकि - जो स्त्रिया सदा बैठी रहा करती है उन के हाथ पाव ठडे, चेहरा फीका, शरीर तपाया हुआ सा तथा दुर्बल, वादी से फूला हुआ मेद, नाड़ी निर्बल, पेट का फूलना, बदहजमी, छाती में जलन, खट्टी डकार, हाथ पैरो में कापनी, चसका और हिष्टीरिया आदि अनेक प्रकार के दुःखदायी रोग तथा ऋतुधर्मसम्बन्धी भी कई प्रकार के रोग होते हैं, परन्तु ये सब रोग उन्हीं स्त्रियो के होते हैं जो कि शरीर की पूरी २ कसरत नही करती है और भाग्यमानी के घमण्ड में आकर दिन रात पडी रहती है |
५ - नींद - आवश्यकता से अधिक देर तक नीद के लेने से रुधिर की गति ठीक रीति से नही होती है, इस से शरीर में चर्वका भाग जम जाता है, पेट की दूद ( तोंद ) बाहर निकलती है, (इसे मेदवायु कहते है ), कफ का जोर होता है, जिस से कफ के कई एक रोगों के होने की सम्भावना हो जाती है तथा आवश्यकता से थोड़ी देर तक ( कम ) नीद के लेने से शूल, ऊरुस्तम्भ और आलस्य आदि रोग हो जाते है ।
बहुत से मनुष्य दिन में निद्रा लिया करते हैं तथा दिन में सोने को ऐश आराम समझते हैं परन्तु इस से परिणाम में हानि होती है, जैसे- क्रोध, मान, माया और लोभ आदि आत्मशत्रुओ ( आत्मा के वैरियों) को थोडा सा भी अवकाश देने से वे अन्त - करण पर अपना अधिकार अधिक २ जमाने लगते हैं और अन्त में उसे वश में कर लेते हैं उसी प्रकार दिन में सोने की आदत को भी थोड़ा सा अवकाश देने से वह भी भाग और अफीम आदि के व्यसन के समान चिपट जाती है, जिस का परिणाम यह होता है कि यदि किसी दिन कार्यवश दिन में सोना न बन सके तो शिर भारी हो जाता है, पैर टूटने लगते है और जमुहाझ्या आने लगती है, इसी तरह यदि कभी विवश होकर काम में लग जाना पड़ता है तो अन्त करण सोलह आने के बदले आठ आने मात्र काम (आधा काम ) करने योग्य हो जाता है, यद्यपि अत्यन्त निर्वल और रोगग्रस्त मनुष्य के लिये वैद्यकशास्त्र दिन में सोने की भी आज्ञा देता है परन्तु स्वस्थ ( नीरोग ) मनुष्य के लिये तो वह (वैद्यक शास्त्र ) ऐसा करने ( दिन में सोने) का सदा विरोधी है
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