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चैनसम्पदायशिक्षा ॥
विधवापन की तकलीफ विक्षेप नहीं हो सकती है, बस इस हिसाब से सो विवाहिता सियों में से केवल दो विभवायें ऐसी दीख पड़ेगी कि मो सन्तानहीन तथा निराश्रमस्त् होंगी अर्थात् जिन का कुछ अन्य प्रबन्ध करने की आवश्यकता रहेगी।
इस किये सब उच्च वर्ण ( ऊंची माति बालों को उचित है कि स्वयंवर की रीति से विवाह करने की प्रथा को अवश्य मचलित करें, यदि इस समय किसी कारण से वक रीति का मचार न हो सके तो आप खुद गुप्ण कर्म और स्वमान को मिलमकर उसी मकार फार्म को कीजिये कि जिस मकार आप के प्राचीन पुरुष करते थे ।
देखिये ! बियाह होने से मनुष्य गृहस्थ हो जाते हैं और उन को प्राम गृहस्थोपयोगी सब ही प्रकार के पदार्थों की आवश्यकता होती है तथा मे सब पदार्थ धन ही से पास होते हैं और धन की प्राप्ति मिधा मादि उतम गुणों से ही होती है वमा विद्या भावि उत्तम गुणों के माप्त करने का समय केवल मास्मानम्पा ही है, भत यदि मास्यावस्था में विवाद कर सन्तान को बन्धन में डाल दिया जावे तो फहिमे विद्या मावि उद्यम गुणों की प्राप्ति कब और कैसे हो सकती है तथा विद्या आदि उद्यम गुणों के अभाव में मन की मावि कैसे हो सकती है और उस के बिना भावश्यक गृहस्थोपयोगी पदार्थों की अनुपम् (अमाधि) से गृहस्थाश्रम में पूर्ण सुख कैसे प्राप्त हो सकता है ! सत्य तो यह है कि मायावस्था में विवाह का कर देना मानो सब भाभमों को और उनक सुखों को नष्ट कर देखा है, इसी कारण से तो प्राचीन काल में विद्याध्ययन के पश्चात् विवाह होता था, शास्त्रकारों ने भी यही आशा दी है कि मंत्रम अच्छे मकार से विद्या
ध्ययन कर फिर विवाह कर के गृह में वास करें, क्योंकि विद्या, मार्ग के माप्त हुए बिना गृहस्थाश्रम का पालन नहीं किया जा इन ( विद्या भावि) को प्राप्त नहीं किया वह पुरुष धर्म, अर्थ, नहीं सिद्ध कर सकता है ॥
जितेन्द्रियता और पुरु सकता है और जिस ने काम और मोक्ष को भी
१-माम पिता को उचित है कि जब अपने पुत्र और पुत्री युवावस्था को बोम्ब कम्पा और मर के महाचमे की निष्त भार सहते की तथा उम्र के धर्माचरण की अच्छे परीक्षा करके ही उनका विवाह करें इसकी विधि कारों ने इस प्रकार की है कि-१ अवस्था १५ वर्ष की वथा की समस्या सोच्छ वर्ष की होगी चाहिये। १ के कम के बराबर होनी चाहिने भागमा इस से भी कुछ कम होनी चाहिये ही चाहिये। रोगों पर सम होने चाहिये। उन्दोनों या दोनों ही सूर्य होने चाहि पुत्रीके गुण-१ ३-जिस के सरीरपर बड़े ९ मा ५- कारीर हो। बस की बाली मधुर
के
प्राप्त हो जाये तब उनक
प्रकार से की
से
विद्वान होने पाहिये अवमा
शरीर में कोई रोग न हो। बस के शरीर में दुर्वन्पम आती हो । न हो तथा मूँछ के बाल भी न हो। ४- बकवाद करनेवाली हो वा महीन मी न हो। जिसका शरीर कम हो परम्प - जिसका गर्म पीम न हो। ९ यो भूरे मेवाको १०-विय