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जैनसम्प्रदायशिक्षा। रसता है भवात् भाद्र म प्राय दूप और मीठा माया जाता है जिस के माने से पिच शान्त हो जाता है, तात्रय यह है कि प्राचीन विद्वाना और बुद्धिमान ने जो २ मार मामु आदि के माहार विहार को विचार फर प्रवृत किये है वे सम ही मनुष्य के लिये परम लाभदायक है परन्तु उन के नियमों को ठीक रीति से न जानना तमा नियौ । जाने विना उन का मनमाना बचाव करना कमी ठामदायफ नहीं हो सकता है।
भत्सन्त शाक के साथ लिसना पड़ता है कि यपपि प्राचीन सर्व व्यवहारा को पूर्वाचामांने पड़ी वरदाता के साथ पेपक विपा के नियमों के अनुसार पापा मा कि मिन से सने साधारण को आरोग्यता भादि मुखा फी माप्ति हो परन्तु वहमान में इतनी अमिषा पा रही है फि छोग उन मापीन समय के पूषाचार्मा के माप हुए सप व्यवहार के असती तत्व को न समझ कर उन में भी मनमाना अनुचित म्यवहार करने कगे है जिस से मुख के मदते उम्टी दुम फी री प्राप्ति होती है, मत मुजना का यह कर्तव्य है कि इस भार अवश्य ध्यान देफर वयक विधा के नियम के भनुसार पपि हुए मवहार के सत्व को सूम समझ कर उन्ही के अनुसार स्थमं पचाप फरें तथा दूसरों को भी उन की शिक्षा देकर उन में मारे कि जिस से देश का कल्याण हो तथा सर्वसाधारण की हितसिद्धि होने से उमय हाफ के सुर्मा की प्राप्ति हो ।
मह भनुम भध्याय फा सदाचारपणन नामफ नवा प्रकरण समाप्त हुमा ।
१-परम्म रपोप्रमिप बत्तमान प्रम में भरिया परम इम (भम) में बस एक मर मात्र परमा भपाम् ममग माफ भाव पिणा पत्तमान में भीम डिप सम मामायापनि विनीयोपमानामुमार गरमै और प्रभप्रेग्न उपम ८ पर प्रभाउन रित्तमरीभार गम र परम्नु भामी प्रामम से गूप सावरि बग्ने । भान में समर्पयामे पादान पर मरर मसेर परमा माया सदभार वरालु में पति भवन मरना मानो यमपी में सामाफिर मह भी देण मयार किए पर प्रामम मा रस ३ मिमत्रा भाव र मानवा मे विभासन से सब बगर भोजन करता मिपाम समप्न पाम (भारन पर भवनपना)मर रामों पा मून , सपरि पूर्व
मुमार भार पम्नमा प्रयोग पर निया के भनुमोगा भारभ मधुर पाली बनम पित मान्ति भार अधिमान् पुरत इस पर भामरने से दम . उप प्रगान में समय सम्भार मान भी सन परम्परामान गमय भोभारम भापरपरसाखे मनुप्प पी पम्मा पूग पर राम माम मोरिसुम मरे भेउन
पर भररसाना माना माल भरना र भोर समग पाकर पापा भी पवनभरन महरिवार भग-4 प्रोवन सा.