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चतुर्थ अध्याय ॥ १-प्रत्येक मनुष्यकृत कारण प्रत्येक मनुष्य अपनी भूल से आहार विहार की अपरिमाणता से और नियमों के उल्लंघन करने से जिन रोग वा मृत्यु को प्राप्त होने के कारणों को उत्पन्न करे, इन को प्रत्येक मनुप्यकृत कारण कहते हैं।
२-कुटुम्वकृत कारण-~-कुटुम्ब में प्रचलित विरुद्ध व्यवहारों से तथा निकृष्ट आचारों से जो रोगोत्पत्ति के कारण होते है, इन को कुटुम्बकृत कारण कहते है ।
३-जातिकृत कारण-निकृष्ट प्रथा से तथा जाति के खोटे व्यवहारो से जो रोगोत्पत्ति के कारण होते हैं, इन्हें जातिकृत कारण कहते है, देखो । बहुत सी जातियों में वालविवाह आदि कैसी २ कुरीतिया प्रचलित है, ये सब रोगोत्पत्ति के दूरवत्ती कारण हैं, इसी प्रकार वोहरे आदि कई एक जातियों में बुरखे ( पड़दा विशेष ) का प्रचार है जिस से उन जातियों की स्त्रिया निर्वल और रोगिणी हो जाती है, इत्यादि रोगोत्पत्ति के अनेक जातिकृत कारण है जिन का वर्णन ग्रन्थविस्तारभय से नहीं करते है।
४-देशकृत कारण-~-बहुत से देशों की आव हवा ( जल और वायु ) के प्रतिकूल होने से अथवा वहा के निवासियों की प्रकृति के अनुकूल न होने से जो रोगोत्पत्ति के कारण होते हैं, इन्हें देशकृत कारण कहते हैं।
५-कालकृत कारण-वाल्य, यौवन और वृद्धत्व ( बुढ़ापा) आदि भिन्न २ अवस्थाओं में तथा छः ऋतुओं में जो २ वर्ताव करना चाहिये उस २ वर्ताव के न करने से अथवा विपरीत वर्ताव के करने से जो रोगोत्पत्ति के कारण होते है, इन्हें कालकृत कारण कहते है।
६-समुदायकृत कारण-मनुष्यों का भिन्न २ समुदाय एकत्रित होकर ऐसे नियमों को वाधे जो कि शरीर संरक्षण से विरुद्ध होकर रोगोत्पत्ति के कारण हों, इन्हें समुदायकृत कारण कहते हैं।
७-राज्यकृत कारण-राज्य के जो नियम और प्रवघ मनुप्यो की तासीर और जल वायु के विरुद्ध होकर रोगोत्पत्ति के कारण हो, इन्हें राज्यकृत कारण कहते हैं।
८-महाकारण-जिस से सब सृष्टि के जीव मृत्यु के भय में आ गिरें, इस प्रकार का कोई व्यवहार पैदा होकर रोगोत्पत्ति वा मृत्यु का कारण हो, इस प्रकार के कारण को महाकारण कहते हैं, अत्यन्त ही शोक का विषय है कि यह कारण वर्तमान समय में प्रायः सर्व जातियों में इस आर्यावर्त में देखा जाता है, जैसे-देखो ! ब्रह्मचर्य और गर्भाधान
१-इस का अनुभव वहुत पुरुषों को हुआ ही होगा कि-अनेक कुटुम्बों में वडे २ व्यसनों और दुराचारों के होने से उन कुटुम्वों के लोग रोगी वन जाते हे ॥
२-जिन कारणों से पुरुषजाति तथा बीजाति की पृथक् २ हानि होती है वे भी (कारण) इन्हीं कारणों के अन्तर्गत हे॥