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बैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ पादि सोलह संस्कार भावि व्यवहार वर्षमान समय में कैसे अपोवश्वापन्न (नीच दशा में पहुँचे हुए) है, विन को पूनाचार्य तो शारीरिक उन्नति के विस्तरपर ले जाने के अप समझ कर पर्म की आवश्यक क्रियाओं में गिनते थे, परन्तु मन पर्चमान समय में उन का प्रचार स्वायद विर ही स्थानों में होगा, इस का फारण यही है कि-तमान समय में राज्यात ममया मातिात न सो ऐसा कोई नियम ही रे मोर न गोगों को इन बातों का शान ही है, इस से गेग अपने रिवाहित को न विचार कर मनमाना गर्वाव करने मगे है, मिस का फल पाठकगण नेत्रों से प्रत्यक्ष ही देत रहे हैं कि मनुष्यगण तनछीन, मन मलीन, द्रव्यरहित और पुत्र तथा परिवार भावि से रहित हो गये हैं, इन सब दुखोंफा कारण केबस न करने योम्प व्यवहार का करना ही है, इस सर्ष हानि को व्यवहारनम की भपेक्षा समझना चाहिये, इसी को देव हो, चाहे धर्म कहो, चाहे भवितव्यता हो।
-स्म धर्म यो सोगा स्वर मी मिमि "माचारवर पामक मत प्रब मैं विबरपूर्वमिमी, उन संस्परों माम बे-पापान पुसवम सन्म सूचना बाराम पारीपूजन पिम्म, नाममम ममापन रेप सफल उपम्पम विपरम्म हिवार, प्रयोग भौर भन्म स सोम स्पिक विपि पाव गोपट उपप्रवर्षन या पर वह या य सकता है परम्त पाठ मनाम पां पर सिर्फ ना ही किसन १ मा पस्पर लिस समय परया बाता-१-पापाका संस्पर यम राने के बाद पत्रे महीने में पराया जाय। २-पपर-पह संस्भर पमबती जाने माने में भयमा पाता है। अम्म-यह सेल्पर सम्मान
चन्म समय में माया माता भर्पात् पम्म समय में योम योनिपी ने पुमा पर एन्वाब के कप प्र स्पर मामा वध ग्स नोतिषी घे म्पमा पीपल और मोर भादि (जोकरय रषित समा पाय वासी मपनी पमा मौर सचिणे) देना । -सूचनसम-मह संस्था भन्मदिन से दो दिन बतीत एने पर (ठीसरे दिन) राजा जाता है। पारसम-पा सस्पर भी सूर्यधमवर्गव संस्पर
दिन मा सकेसरे दिन कराया जाता है। इस सस्पर में पास नपान मा याता(परिवरिपुल-कम्पकार से पोप विप तक प्रसूख भीमप रिचर बुच पता इस लिये गरम गोपपि द्वारा अपना माग पूप से पाठक नरकपरमा बैंककन्तु योन्म इस में पसी कर पाने के प्रचार रोप उत्पम ऐपते है, यह संस्मर भी हमारे रसी
पर पुति परवा)। (-पणीपूरनपा स्पर कम से रामा बाध -मधि कपा मस्पर सम्म पमय से रच दिन मतीत नेमार (म्पाय मन) करावा या है।बामा-या सस्थर म एपिष्म सस्पर के दिन ही पराप पाता है। समापन- पत्थर
के 4 मईमे बार बोर भी पार महोये के पब कराया चावा।। -कर्मवेषसमत्सर वासरे पाप वा सात बप में भाया पता -पापा-या संस्पर पोषित प्रमय में फरमा पापा दस संस्पर में बालक परवारामे पाते है इसे मुनमस्कार मी पट।११पक्र-
पत्भिर बाठ की स्पीछे कमा पाता है। पारम्म-या संस्पर काम में मापापा।१४-निपा-या सस्पर उस समय में पाया जाता है या पया पाना चाहिये पर की और पुस इस स्पिर पेम्ब भवस्थामा ऐ बारें मोकिसे मापा पाने में खास बोधीवपा भीमता है उसी प्रपर भवस्था में निवास प्रमा भी मम मई पांचवा , मस्त बनेपनियों प्रेमवाद। १५-नबरोप-या स्परा बिस में जो पुम