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चैनसम्प्रदायविया ॥ है उन फो मदेवध फहते हैं, मतिमन्ध के विषय में इसना और भी जान भेना पाहिये कि-से शानापरणी पर्भ का सभाय आसपर पट्टी बांधने के समान है उसी मार मिस २ फर्मों का मिज २ समाये दे, इन्ही मां के सम्बंध के अनुसार प्रदेधर्मप फे द्वारा उत्पन हुमा रोग साध्य सभा फप्टग्रामवफ होता है और स्मिविधपाग रोग साम्य, मसाध्य और फरसाध्यतफ होता है, इसी प्रकार भनेक पदधर्मसमावद्वारा अर्भाव स्वभाव से ( पिना ही परिश्रम फे) मिट जाते हैं परन्तु इस से यह नहीं समझ लेना चाहिये कि सनदी व पीर रोग विना परिश्रम और बिना इगम के अच्छे हो मांगे, पोफि फर्मसगापजन्य कारणों में अन्सर होता है, देसो भोरी प्रधानता जप भोड़ा सा फट अर्थात् अस्स सुखार सनी और पेट फा दर्द आदि होसार सा वो पद शरीर में पफ दो दिनसफ गर्माची दम और यमन भादि की घोड़ी सी कसरी देकर अपने आप गिट जाता परन्तु पड़ी अमानता से परा का होता है भवात् को २ रोग उत्सम होकर मत दिनोसफ टहर है मा उन के पारणा को यदि न रोका जावे वो थे रोग गम्भीर रूप धारण करते हैं । ___ पहिले फद है कि-रोग के गर करो का सप से पहिला उपाय रोग के कारण को रोफ्ना ही है, क्योंकि रोग के कारण पी रायट दोने से रोग भाप दीक्षान्त हो जायगा,
से यदि किसी को अधीर्म से मुसार आ जाये और यह पफ दो दिनतफ पन र मेपे अभया भंग की हार का पसगसा पानी अथवा अन्य कोई पाप हा पथ्य में तो यह (अनीर्मजन्य प्यर ) भीम ही पग जाता है परना रोग के कारण को समझे पिना यदि रोग की निधि के अनेक उपाय भी किये पा को भी रोग पर मारे २, रा से सिरफि रोग के कारण को समझ पर पाल पम्म परना जितना मागदायक होता है उनी भागवायफ मोपपि पदापि नहीं ले सकती है, पयोकि सो! पथ्य के न परमेपर सोपभि से छगी साम न दोसा था पम्प करने पर भोपधि की भी कोई भापश्यकता नहीं रती दे, इस पात म सवादी ध्यान रखना चाहिये कि ओपधि रोग नही मिटाती है कि यह रोग के मिटाने में सहायक मान दोती है।
ऊपर जिस का पर्मन पर सुरेदे पर रोग को मिटानेपानी पीप की सामाविक शकि निधयनयरो सरीर रातदिन अपना प्रम परतीदी रवी६, उसको जब सानुकूल 14 सभाव भी न १-से निम मिम
बातुनीराम। 1- मसरूरपारपूना समधिपार• प्रको .. r-auritus प्रम्बार 1-44 dAHANE मे मग म्योपनिय
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