________________
३३८
चैनसम्मामशिया ॥ निरुति है, परन्तु सब छी नानवे भोर मानते है कि भवातावदनी नामक म मा जर उदय होता है तब चाहे बातमी कितनी ही सम्मान क्यों न रमले परन्तु उस से भून हुए विना क्वापि नहीं रहती है (अयस्य मूल होती है) फिन्तु जनता शातावनी फभ के योग स भादमी पुदरती नियम के अनुसार चलता है और बातफ शरीर को साफ दवा पानी और मुराफ का उपयोग मिग्ता देवनसक रोग के आन पर मम नहीं रहता दे, यपपि भादमी का कभी न घूमना पफ असम्भम पात है (मनुप्म पूरे बिरा पदापि नहीं बच सम्ता है) तथापि यदि विचारधीन भावमी शरीर के निपों ने पच्छे प्रकार समझ कर उन्दी के अनुसार वसाय फर तो बहुत से रोगों से अपने शरीर को पना सस्ता है॥
रोग के कारण ॥ इस बात का समदा सम को अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि करण के बिना रोग ममापि नदी हो सकता है और रोग के कारण को टीका २ जाने विना उस प्रमो प्रकार से बाज भी नहीं हो सकता है, इस बात को पदि पादमी मच्छी तरह समझ के तो पह सम्पन्चर (आन्तरिक) पिचारधीन शेफर भपने रोग की परीक्षा को सच ही कर सकता है भोर रोग की परीक्षा पर सेन फ बाद उस का इलाज कर छेना मी सापनि दी है, देसा । यस रोग का फारम निबन हो पायेगा तप रोग से रह सकता है। फ्यापि ममानता से दोकी र भूठ को शान से सुधारनेपर सामाविक निमम ही अपना काम करके फिर भससी मचा में पाया मेतादे, योफि जीप पा सरुप अम्मा पाप विप पापा से दिस भभात् भम्यापात )२इसलिये शरीर में रोग के कारण रोकनपाली मामायिक मकि स्थित दे, सरे--पुण्य के हत्या के रन से भी वाताअवनी फम में भी रोग रोकने की सामाविर फिदे, इस लिय रोग के मनेक भरण दो उपम फ पिना ही सामाविक प्रिया में दूर दात जाते है, पोफि एफ दूसरे के विरोधी दोन से रोग भार सामायिक शकि, सातापदनी भीर अवातावनीर्म सममा निधयनय सजीर और धर्म का परम्पर शरीर में सदा झगड़ा रहता है, पर हातावनी में की जीत होती है सन रोग को उस्यम परनेमा प्ररमों का कुछ भी भमर नही तारेन्गुि बन भसातारेवनी कम की जीत होती है म रोग के परम मादीममा मकवानपyutसतारो! भाद
1:-मनी बिम मेरोषागार ममगारवा प्रेयसीमामा
पम में भागगरकोप बिमिया र माय भीमनाgade
--