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चतुर्थ अध्याय ॥
३२९ वाले मुसलमान लोग अपने ही वर्तनों में उसे बनाते है और अपने ही घडों का पानी डालते है उसी को सब लोग मजे से पीते है, इस के अतिरिक्त एक ही चिलम को हिन्दू मुसलमान और ईसाई आदि सब ही लोग पीते है कि जिस से आपस में अवखरात (परमाणु ) अदल बदल हो जाते है तो अब कहिये कि हिन्दू तथा मुसलमान या ईसाइयों में क्या अन्तर रहा, क्या इसी का नाम शौच वा पवित्रता है ?
प्रिय सुजनो ! केवल पदार्थविद्या के न जानने तथा वैद्यकशास्त्र पर ध्यान न देने के कारण इस प्रकार की अनेक मिथ्या वातों में फंसे हुए लोग चले जाते है जिस से सब के धर्म कर्म तथा आरोग्यता आदि में अन्तर पड गया और प्रतिदिन पडता जाता है, अतः अब आप को इन सब हानिकारक बातो का पूरा २ प्रबन्ध करना योग्य है कि जिस से आप के भविष्यत् (होनेवाले ) सन्तानों को पूर्ण सुख तथा आनन्द प्राप्त हो ।
हे विद्वान् पुरुषो । और हे प्यारे विद्यार्थियो । आपने स्कूलो में पदार्थविद्या को अच्छे प्रकार से पढ़ा है इसलिये आप को यह वात अच्छे प्रकार से मालूम है और हो सकती है कि तमाखू में कैसे २ विषैले पदार्थ मिश्रित है और आप लोगो को इस के पीने से उत्पन्न होनेवाले दोष भी अच्छे प्रकार से प्रकट है अतः आप लोगों का परम कर्तव्य है कि इस महानिकृष्ट हुक्के के पीने का स्वयं त्याग कर अपने भाइयो को भी इस से बचावें क्योंकि सत्य विद्याका फल परोपकार ही है। ___ इस के अतिरिक्त यह भी सोचने की बात है कि तमाखू आदि के पीने की आज्ञा किसी सत्यशास्त्र में नहीं पाई जाती है किन्तु इस का निषेध ही सर्व शास्त्रों में देखा जाता है, देखो- तमाखुपत्रं राजेन्द्र, भज माज्ञानदायकम् ॥
तमाखुपत्रं राजेन्द्र, भज माज्ञानदायकम् ॥ १॥ - अर्थात् हे राजेन्द्र ! अज्ञान को देनेवाले तमाखुपत्र (तमाखू के पत्ते ) का सेवन मत करो किन्तु ज्ञान और लक्ष्मी को देनेवाले उस आखुपत्र अर्थात् गणेश देव का सेवन करो ॥१॥
१-तमा बनाते समय उन का पसीना भी उमी में गिरता रहता है, इत्यादि अनेक मलीनताये भी तमाखू में रहती हैं।
२-देखो। जिस चिलम को प्रथम एक हिन्दू ने पिया तो कुछ उस के भीतर अवसरात गर्मी के कारण अवश्य चिलम में रह जायेंगे फिर उसी को मुसलमान और ईसाई ने पिया तो उस के भी अवखरात गर्मी के कारण उस चिलम मे रह गये, फिर उमी चिलम को जब ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यादि ने पिया तो कहिये अब परस्पर मे क्या मेद रह गया ?
३-इसी प्रकार देशी पाठशालाओं तथा कालिजों के शिक्षको को भी योग्य है कि वे कदापि इस हफे को न पियें कि जिन की देखादेखी सम्पूर्ण विद्यार्थी भी चिलम का दम लगाने लगते हैं।
४-यह सुभाषितरत्नभाडागार के प्रारभ मे श्लोक है ॥