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जैनसम्मवामशिक्षा ||
फवन ही है, इस लिये मुझको भी उचित है कि मैं भी रम से उतर कर शस्त्र छोड़ कर और कवच को उतार कर इस के साथ युद्ध कर इसे जी तूं, इस प्रकार मन में विचार फर रथ से उतर पड़ा और वस्त्र तथा कवच का स्याग कर सिंह को जब सिंह नमृदीक आया सब दोनों हाथों से उस के दोनों ओठों को वस्त्र की तरह चीर कर जमीन पर गिरा दिया परन्तु इतना करने पर भी शरीर से न निकला तब राजा के सारभि ने सिंह से कहा कि — दे सिंह ! जैसे तू मुग राज है उसी प्रकार तुझ को मारनेवाला यह नरराब है, यह कोई साधारण पुरुष नहीं है, इस लिये अब तू अपनी वीरता के साहस को छोड़ दे, सारभि के इस घमन को सुन कर सिंह के प्राण ले गये ।
दूर से ललकारा, पकड़ कर जीर्ण सिंह का जीन
बर्तमान समय में जो राम्रा आदि लोग सिंह का शिकार करते हैं वे भी अनेक छठ बल कर तथा अपनी रक्षा का पूरा प्रबंध कर छिपकर शिकार करते हैं, बिना छत्र के यो सिंह की शिकार करना दूर रहा किन्तु समदा में उसकार कर तलवार या गोली के चानेवाले भी भार्यावत भर में दो बार ही नरेश होंगे ।
धर्मशास्त्रों का सिद्धान्त है कि जो रामे महारामे अनाम पशुओं की हत्या करते हैं उन फ राज्य में माय दुर्भिक्ष होता है, रोग होता है तथा ये सन्तानरदित होते हैं, इत्यादि अनेक कष्ट इस भव में ही उन को प्राप्त होते हैं और पर भय में नरफ में जाना पड़ता है, विचार करने की बात है फि— यदि हमको दूसरा कोई मारे तो हमारे जीव को कैसी तकलीफ मालूम होती है, उसी प्रकार हम भी जब किसी प्राणी को मारे तो उस को भी पैसा ही दुःख होता है, इसलिये रामे महाराजों का यही मुख्य धर्म दे अपने २ राज्य में मामियों को मारना बंद कर दे और स्वयं भी उफ न्यसन को छोड़ फर पुत्रषत् सममाजियों की तन मन धन से रक्षा करें, इस संसार में जो पुरुष इन मड़े सात म्यसनों से बचे हुए हैं उन को धन्य है और मनुष्यजन्म का पाना भी उन्हीं फा सफल समझना चाहिये, और भी बहुत से हानिकारक छोटे २ म्पसन इन्दी छात व्यसनों भार्गव दें, जैसे-१-कोड़ियों से सो जुए को न खेलना परन्तु भनेक मकार का फाटका (चोरी भाविका सट्टा करना, २-नई चीनों में पुरानी और नकली धीमों का पना कम दोना, दगाबाजी करना, ठगाई फरना ( यह सब चोरी दी है ), ३- अनेक मार का नशा करना, पर का भसपाव चाहे विक दी जाये मेगाहर नित्य मिटाई साये बिना नहीं रहना, ५-रात्रि को बिना सा चैन का न पढना, मोन परन्तु ६- इधर उधर की चुगनी करना, यस न बोलना भादि, इस प्रकार अनेक तरह * परान है, जिन पन्ने में पड़कर उन से पिण्ड सुहाना कठिन हो जाता है, जैसा कि किसी कवि ने कहा है कि- 'म अफीम रस । तस्कर ने जूमा || पर पर रीसी