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चतुर्थ अध्याय ॥
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कलेजे में चालनी के समान छिद्र हो जाते है और वे लोग आधी उम्र में ही प्राण त्याग करते है, इस के सिवाय धर्मशास्त्र ने भी इस को दुर्गति का प्रधान कारण कहा है । ६ मांस खाना-छठा व्यसन मांसभक्षण है, यह नरक का के भक्षण से अनेक रोग उत्पन्न होते है, देखो ! इस की हानियो को यूरोप आदि देशों में भी मास न खाने की एक सभा हुई है उस सभा के डाक्टरों ने और सभ्य ने वनस्पति का खाना पसन्द किया है ( बेजेटरियन सुसाइटी ) मास. भक्षण के दोषों और रही है ।
देनेवाला है, इस विचार कर अव
तथा प्रत्येक स्थान में वह सभा वनस्पति के गुणों का उपदेश कर
राजे महाराजों ने नरकादि
७ शिकार खेलना - सातवा मद्दा व्यसन शिकार खेलना है, इस के विषय में धर्मशास्त्रों में लिखा है कि इस के फन्दे में पड कर अनेक दुःखों को पाया है, वर्त्तमान समय में बहुत से कुलीन राजे में संलग्न हो रहे है, यह बडे ही शोक की बात है, देखो ! यह है कि सब प्राणियों की रक्षा करें अर्थात् यदि शत्रु भी हो तो उस को न मारें, अब विचारना चाहिये कि बेचारे मृग आदि जीवन विताते है उन अनाथ और निरपराध पशुओं पर शस्त्र का चलाना और उन को मरण जन्य असह्य दुख का देना कौन सी बहादुरी का काम है ? अलवत्ता प्राचीन समथके आर्य राजा लोग सिंहकी शिकार किया करते थे जैसा कि कल्पसूत्र की टीका में वर्णन है कि त्रिपृष्ठ वासुदेव जगल में गया और वहा सिंह को देखकर मन में विचारने लगा कि न तो यह रथपर चढ़ा हुआ है, न इस के पास शस्त्र है और न शरीर पर
महाराजे भी इस दुर्व्यसन राजाओं का मुख्य धर्म तो और शरण में आ जावे जीव तृण खाकर अपना
१- मनु जी ने अपने वनाये हुए धर्मशास्त्र (मनुस्मृति ) में मासभक्षण के निषेध प्रकरण में मांस शब्द का यह अर्थ दिखलाया है कि जिस जन्तु को मैं इस जन्ममे खाता हू वही जन्तु मुझ को पर जन्म मे खावेगा, उक्त महात्मा के इस शब्दार्थ से मासभक्षकों को शिक्षा लेनी चाहिये ॥
२- वासुदेव के वल का परिमाण इस प्रकार समझना चाहिये कि वारह आदमियों का वल एक बैल में होता है, दश बैलों का वल एक घोडे मे होता है, बारह घोडों का वल एक भैंसे में होता है, पाच सौ भैंसों का वल एक हाथी में होता है, पाच सौ हाथियों का वल एक सिंह में होता है, दो सौ सिंहों का वल एक अष्टापद ( जन्तु विशेष ) में होता है, दो सौ अष्टापदों का वल एक वलदेव मे होता है, दो वलदेवों का वल एक वासुदेव में होता है, नौ वासुदेवों का वल एक चक्रवर्त्ती मे होता है, दश लाख चक्रवत्तियों का वल एक देवता मे होता है, एक करोड देवताओ का वल एक इन्द्र में होता है और तीन काल के इन्द्रों का वल एक अरिहन्त मे होता है, परन्तु वत्तमान समय में ऐसे वलधारी नहीं हैं, जो अपने वल का घमण्ड करते हैं वह उन की भूल है, पूर्व समय मे आदमियों में और पशुओं में जैसी ताकत होती थी अव वह नहीं होती है, पूर्व काल के राजे भी ऐसे वलवान् होते थे कि यदि तमाम प्रजा भी बदल जावे तो अकेले ही उस को वश में ला सकते थे, देखो ! संसार मे शक्ति भी एक वडी अपूर्व वस्तु है जो कि पूर्वपुण्य से ही प्राप्त होती है ॥