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चतुर्थ अध्याय ॥
३१७ मुखसुगन्धि की सब चीजो में से धनियां और सौंफ, ये दो चीजें अधिक लाभदायक मानी गई है, क्योंकि ये दीपन पाचन है, स्वादिष्ट है, कठ को सुधारती है और किसी प्रकार का विकार नहीं करती है ! __इस प्रकार भोजन क्रिया से निवृत्त होकर तथा थोडी देर तक विना निद्रा के विश्राम लेकर मनुष्य को अपने जीवन निर्वाह के उद्यम में प्रवृत्त होना चाहिये परन्तु वह उद्यम भी न्याय और धर्म के अनुकूल होना चाहिये अर्थात् उस उद्यम के द्वारा परापमान तथा पर हानि आदि कभी नहीं होना चाहिये, इस के सिवाय मनुप्य को दिन भर में क्रोध
आदि दुर्गुणों का त्याग कर मन और इन्द्रियो को प्रसन्न करनेवाले रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि विषयों का सेवन करना चाहिये, दिन में कदापि स्त्री सेवन नहीं करना चौहिये, दिन के चार वा पाच वजे (ऋतु के अनुसार ) व्यावहारिक कार्यों से निवृत्त होकर थोडी देर तक विश्राम लेकर शौच ऑदि से निवृत्त हो जावे, पीछे यथायोग्य भोजन आदि कार्य करे भोजन के पश्चात् मील दो मील तक ( समयानुसार ) वायु सेवन के लिये अवश्य जावे, वायु के सेवन से लौट कर सायकाल सम्बधी यथावश्यक धर्म ध्यान आदि कार्य करे इस से निवृत्त होने के पश्चात् दिनचर्या का कोई कार्य अवशिष्ट नहीं रहता है किन्तु केवल निद्रारूप कार्य शेष रहता है। __जीवन की स्थिरता तथा नीरोगता के लिये निद्रा भी एक बहुत ही आवश्यक पदार्थ है इस लिये अब निद्रा वा शयन के विषय में लिखते है.
शयन वा निद्रा॥ मनुष्य की आरोग्यता के लिये अच्छी तरह से नींद का आना भी एक मुख्य कारण है परन्तु अच्छी तरह से नींद के आने का सहज उपाय केवल परिश्रम है, देखो! जो लोग दिन में परिश्रम नहीं करते है किन्तु आलसी होकर पड़े रहते हैं उन को रात्रि में अच्छी तरह
१-इन दोनों के सिवाय जो मुख सुगन्धि के लिये दूसरी चीजों का सेवन किया जाता है उन में देश काल और प्रकृति के विचार से कुछ न कुछ दोप अवश्य रहता है, उन में भी तमाखू आदि कई पदार्थ तो महाहानिकारक हैं, इस लिये उन से अवश्य वचना चाहिये, हा आवश्यकता हो तो ऊपर लिखे सुपारी आदि पदार्थों का उपयोग अपनी प्रकृति और देश काल आदि का विचार कर अल्प मात्रा में कर लेना चाहिये ॥
२-मन और इन्द्रियों को प्रसन्न करनेवाले रूपादि विषयों के सेवन से भोजन का परिपाक ठीक होने से आरोग्यता वनी रहती है । ३-दिन में स्त्री सेवन से आयु घटती है तथा बुद्धि मलीन हो जाती है ॥ ४-शौच आदि में प्रात काल के लिये कहे हुए नियमों का ही सेवन करे ॥ ५-रात्रिभोजन का निषेध तो अभी लिख ही चुके हैं । ६-इस कार्य का मुख्य सम्बध रात्रिचर्या से है किन्तु रात्रिचर्यारूप यही कार्य है परन्तु यहां रात्रिचर्या को पृथक् न लिखकर दिनचर्या में ही उस का समावेश कर दिया गया है ॥