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चतुर्थ अध्याय ॥
३१९ ___ को अधिक देखता है, तमाम रात सैकडो बाग बगीचों और फुहारों की और करता रहता
है, परन्तु इसे भी असत्य समझना चाहिये, क्योकि प्रकृति के विकार से उत्पन्न होने के कारण यह कुछ भी लाभ और हानि को नहीं कर सकता है।
६-वायु की प्रकृतिवाला मनुष्य स्वप्न में पहाड़ पर चढ़ता है, वृक्षों के शिखर पर जा बैठता है और मकान के ठीक ऊपर जाकर सरक जाता है, कूदना, फादना, सबारी पर चढ़ कर हवा खाने को जाना और आकाश में उड़ना आदि कार्य उस को खप्न में अधिक दिखलाई देते हैं, इसे भी पूर्ववत् असत्य समझना चाहिये, क्योंकि प्रकृति के विकार से उत्पन्न होने से इस का भी कुछ फलाफल नहीं होता है।
७-खम वह सच्चा होता है जो कि धर्म और कर्म के प्रभाव से आया हो, वह चाहे शुभ हो अथवा अशुभ हो, उस का फल अवश्य होता है।
८-रात्रि के प्रथम पहर में देखा हुआ स्वम बारह महीने में फल देता है, दूसरे प्रहर में देखा हुआ स्वम नौ महीने में फल देता है, तीसरे प्रहर में देखा हुआ स्वप्न छः महीने में फल देता है और चौथे प्रहर में देखा हुआ स्वप्न तीन महीने में फल देता है, दो घड़ी रात बाकी रहने पर देखा हुआ खप्न दश दिन में और सूर्योदय के समय में देखा हुआ स्वप्न उसी दिन अपना फल देता है।
९-दिन में सोते हुए पुरुष को जो स्वप्न आता है वह भी असत्य होता है अर्थात् उस का कुछ फल नहीं होता है।
१०-अच्छा स्वप्न देखने के बाद यदि नीद खुल जावे तो फिर नहीं सोना चाहिये किन्तु धर्मध्यान करते हुए जागते रहना चाहिये ।
११-बुरा स्वप्न देखने के बाद यदि नींद खुल जावे और रात अधिक बाकी हो तो फिर सो जाना अच्छी है।
१२-पहिले अच्छा स्वप्न देखा हो और पीछे बुरा स्वप्न देखा हो तो अच्छे स्वप्न का फल मारा जाता है ( नहीं होता है), किन्तु बुरे स्वप्न का फल होता है, क्योंकि बुरा स्वप्न पीछे आयाहै ।
१३-पहिले बुरा स्वम देखा हो और पीछे अच्छा स्वप्न देखा हो तो पिछला ही स्वप्न फल देता है अर्थात् अच्छा फल होता है, क्योंकि पिछला अच्छा स्वप्न पहिले बुरे स्वप्न के फल को नष्ट कर देता है।
१-अच्छा खप्न देखने के बाद जागते रहने की इस हेतु आज्ञा है कि सो जाने पर फिर कोई बुरा खप्त आकर पहिले अच्छे खान के फल को न विगाड डाले ।
२-परन्तु अफसोस तो इस बात का है कि मले वा बुरे खप्न की पहचान भी तो सब लोगों को नहीं होती है ।