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चैनसम्प्रदायक्षिक्षा ||
से 'नींद नहीं आती है, इस के अतिरिक्त परिमित तथा प्रकृति के मनुकूल आहार बिहार से भी नींदका धनिष्ठ (बहुत बड़ा ) सम्बम है, देखो ! जो लोग शाम को भषिक भोजन करते हैं उन को प्राय स्वम आया करते हैं अर्थात् पणी नींद का नाश होता है, क्योंकि मनुष्य को स्वम तब ही आते हैं जब कि उस के मगन में आठ अजाल रहते हैं और मगम को पूरा विश्राम नहीं मिलता है इसलिये मनुष्यमात्र को उचित है कि अपनी क्षति के अनुसार शारीरिक तथा मानसिक परिश्रमों को करे और अपने आहार बिहार को भी अपनी प्रकृति तथा देश काल भादि का विचार कर करता रहे जिस से निद्रा में विषास न हो क्योंकि निद्रा के विषात से भी कालान्तर में अनेक भयंकर हानियां होती है निद्रा में विषात न होने पर्यात् ठीक नींद माने का लक्षण यही है कि मनुष्य को मनावस्था में स्वमन भावे क्योंकि स्वम दशा में विष्व की स्थिरता नहीं होती है किन्तु चलता रहती है ।
स्वप्नों के विषय में अर्थात् किस प्रकार का स्वम कव भासा है विषय में भिन्न २ शाम्रो तमा भिन्न २ जनामों की मिस २ फल के विषय में भी पृथक् २ सम्मति है, इन के विषय का भी है जिस में स्वमों का शुभाशुभ भादिं बहुतसा फल किला है, उक शास्त्र के अनु सार बैंचक अन्यों में भी स्वमों का शुभाशुभ फल माना है, देखो ! यागमट्ट ने रोगप्रकरण में चकुन और स्वमों का फल एक अलग प्रकरण में रोग के साम्यासाध्य के जानने के किये बिना है, उस विषय को अन्य के वन जाने के भय से अधिक नहीं मिल सकते हैं, परन्तु मगच पाठकों के ज्ञानार्थ संक्षेप से इस का वर्णन करते हैं.
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स्वमविचार ||
और क्यों आता है इस सम्मति है एव स्वम के मविपावक एक लमन
१ - अनुभूत वस्तु का मो सम भाता है, उसे असस्य समझना चाहिये मर्षात् उस का कुछ फल नहीं होता है ।
२-सुनी हुई बात का भी स्वम असस्य ही होता है ।
३ देखी हुई वस्तु का जो स्वम जाता है वह भी असत्य है ।
४ - शोक और चिन्ता से लाया हुआ भी स्वम असत्य होता है ।
५- प्रकृति के विकार से भी सम भाता है जैसे--पिच प्रकृति बाला मनुष्य पानी, फूल, अन, भोजन और रखों को स्लम में देखता है तथा हरे पीछे और ठाम रंग की वस्तुओं
१ मि में समानविय दर्शनावरणी कम नींद को अच्छी नी मा २ विद्यालयों का
नहीं कर धानको निमिता भवे
अनेक यों में किया गया है इस सिपे नद्दो पर जब हानियों
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