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चतुर्थ अध्याय ॥
३२१ १२-बहुत देर से तथा बहुत देरतक नहीं सोना चाहिये, किन्तु जल्दी सोना चाहिये तथा जल्दी उठना चाहिये।
१३-बहुत पेटभर खाकर तुर्त नहीं सोना चाहिये ।।
१४-ससार की सब चिन्ता को छोड़ कर चार शरणा लेकर चारों आहारों का त्याग करना चाहिये और यह सोचना चाहिये कि जीता रहा तो सूर्योदय के बाद खाना पीना बहुत है, चौरासी लाख जीवयोनि से अपने अपराध की माफी माग कर सोना चाहिये।
१५-सात घटे की नीद काफी होती है, इस से अधिक सोना दरिद्रों का काम है।
इस प्रकार रात्रि के व्यतीत होने पर प्रातःकाल चार बजे उठकर पुनः पूर्व लिखे अनुसार सब वर्ताव करना चाहिये ॥ यह चतुर्थ अध्याय का दिनचर्यावर्णन नामक आठवा प्रकरण समाप्त हुआ।
नवां प्रकरण-सदाचारवर्णन ॥
सदाचार का स्वरूप ॥ यद्यपि सद्विचार और सदाचार, ये दोनो ही कार्य मनुष्य को दोनो भवो में सुख देते है परन्तु विचार कर देखने से ज्ञात होता है कि इन दोनों में सदाचार ही प्रवल है, क्योंकि सद्विचार सदाचार के आँधीन है, देखो सदाचार करनेवाले ( सदाचारी) पुण्यवान् पुरुष को अच्छे ही विचार उत्पन्न होते है और दुराचार करनेवाले (दुराचारी) दुष्ट पापी पुरुष को बुरे ही विचार उत्पन्न होते हैं, इसी लिये सत्य शास्त्रों में सदाचार की बहुत ही प्रशसा की है तथा इस को सर्वोपरि माना है, सदाचार का अर्थ यह है किमनुष्य दान, शील, व्रत, नियम, भलाई, परोपकार दया, क्षमा, धीरज और सन्तोष के साथ अपने सर्व व्यापारों को कर के अपने जीवन का निर्वाह करे ।
१-इस के हानि लाभ पूर्व इस प्रकरण की आदि में लिख चुके है ।
२-यह दिनचर्या का वर्णन सक्षेप से किया गया है, इस का विस्तारपूर्वक ओर अधिक वर्णन देखना हो तो वैद्यक के दूसरे ग्रन्थों में देख लेना चाहिये, इस दिनचर्या में स्त्री प्रसग का वर्णन ग्रन्थ के विस्तार के भय से नहीं लिखा गया है तथा इस के आवश्यक नियम पूर्व लिख भी चुके हैं अत पुन यहा पर उस का वर्णन करना अनावश्यक समझ कर भी नहीं लिखा हे ॥ ___ ३-इस प्रन्थ के इसी अध्याय के छठे प्रकरण मे लिखे हुए पथ्य विहार का भी समावेश इसी प्रकरण में हो सकता है।
४-क्योंकि "बुद्धि कर्मानुसारिणी" अर्थात् बुद्धि और विचार, ये दोनो कर्म के अनुसार होते है अर्थात् मनुष्य जैसे भले वा बुरे कार्य करेगा वैसे ही उस के बुद्धि और विचार भी भले वा बुरे होंगे, यही शास्त्रीयसिद्धान्त है ॥ ५-इसी प्रकार के वर्ताव का नाम श्रावकव्यवहार भी है ॥