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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
सर्वस्व का सत्यानाश कर दें और तिस पर भी उन के परम हितैषी कहलाने, हा शोक ! हा शोक !! हा ठोक ! ! !
१४ - मोजन करने के बाद मुख को पानी के कुर्ते कर साफ कर लेना चाहिये तथा दाँतों की चिमटी भादि से दाँतों और मसूड़ों में से जूठन को बिलकुल निकाल डा चाहिये, क्योंकि खुराक का मन मसूड़ों में वा दाँतों की जड़ में रह जाने से मुख में दुर्गन्धि आने लगती है तथा दाँखों का और मुख का रोग मी उत्पन्न हो जाता है !
१५- भोजन करने के पीछे सो कदम टहलना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से मन पचता और वायु की वृद्धि होती है, इसके पीछे मोड़ी देर तक पलंग पर लेटना चाहिये, इस से मंग पुष्ट होता है, परन्तु बेटकर नींद नहीं केनी चाहिये, क्योंकि नींव के छेने से रोग उत्पन्न होते हैं, इस विषय में यह भी स्मरण रहे कि माता को भोजन करने के पश्चात् पगपर पाये और दहिने करवट से लेटना चाहिये परन्तु नींव नहीं छेनी चाहिये तथा सामकास्त्र को भोजन करने के पश्चात् टहकना परम लाभदायक है ।
तिपाई और कुर्सी आदि पर बैठने, नींव
१६ - भोजन करने के पश्चात् प्रेम, स्टूल छेने, भाग के सन्मुख बैठने, भूप में भरने, दौड़ने, घोड़े पाट मावि की सबारी पर चढ़ने तथा कसरत करने भावि से नाना प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं, इसलिये भोजन के पश्चात् एक घण्टे वा इस से भी कुछ अधिक समयतक ऐसे काम नहीं करने चाहियें ।
१७- मोचन के पाचन के लिये किसी चूर्ण को खाना वा सर्वेस आदि को पीना उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से पैसा ही मम्बास पर जाता है और पैसा अभ्यास पर जाने पर चूर्ण आदि के सेवन किये बिना अन्न का पाचन ही नहीं होता है, कुछ समयतक ऐसा अम्बास रहने से बठरामि की स्वाभाविक देखी न रहने से भारोम्यता में अन्तर पर जाता है। मोमन पर भोजन करना, भर खाना तथा भव उत्पन्न हो जाते हैं, इस
१८ - भोजन के समय में अत्यस पानी का पीना, विना पधे बिना मूख के खाना, भूख का मारना, आपसेर के स्थान में सेर न्यून खाना आदि कारणों से धमीर्ण तथा मम्दामि भादि रोग सिमे इन भावों से बचते रहना चाहिये ।
१९ पध्यानस्य वर्णन में तथा धातुभर्या गर्जन में जो कुछ भोजन के विषय में मिला गया है उस का सदैव सन्यास रखना चाहिये ॥
१- हा भारत ! वरे मित्र में माला प्रकार के बजे कप मे है, क्याकि इस रेस में बहुधा ऐसे मत है कि जिन में गृहस्व पुरुषों और वियों को गुरु का झूठा पाना भी धर्म का भग्र मान्य है और तमना मना है और जिस से रियार समचार्य गुरु का सूप परसाद (प्रसाद) झूठा पानी भी अमृत के समान मान कर बेचारे भाले श्री पुरुष पीत है, हे मित्रमण ! भवा अब तो सोचे म भरा हो। तुम इस अगिया बड़ लिए में कपड़े छोटे रहोगे । -भोजन का विशेष वर्णन भोजन का आदि प्रम्यों में किया गया है, वहां देख
चाहिने